जानिए कैसे करें इक्विटी में निवेश की प्‍लानिंग (फोटो-Freepik)

निवेश से जुड़े जोखिम को कम करने को लिए अपनाएं ये तरीके रहेंगे खुश

सामान्यतौर पर आपके portfolio का एसेट एलोकेशन इक्विटी, डेट इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न और कैश सेगमेंट में बंटा होता है.

अगर आप इक्विटी और इक्विटी से जुड़े निवेश विकल्पों में पैसे लगाकर बिना जोखिम का आकलन किए हाई रिटर्न हासिल कर रहे हैं तो आप सही रास्त पर नहीं हैं। इस तरह के हर निवेश के साथ कुछ जोखिम जरूर जुड़ा रहता है और किसी निवेशक की सबसे बड़ी भूल होती है इस तरह के जोखिमों की तरफ ध्यान न देना। जब आप अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में अलग-अलग निवेश विकल्पों में निश्चित अनुपात में अपने पैसे लगाते हैं तो आपके पूरे पोर्टफोलियो पर जोखिम कम होता है।

सही तरह से करें एसेट एलोकेशन

सामान्यतौर पर आपके portfolio का एसेट एलोकेशन इक्विटी, डेट और कैश सेगमेंट में बंटा होता है। लेकिन ये कई व्यक्तिगत कारकों पर भी निर्भर करता है जिसमें आपकी उम्र, जोखिम लेने की क्षमता, आपकी बचत और वित्तीय लक्ष्य शामिल होते हैं। इससे साफ होता हो कि एसेट एलोकेशन का मतलब सिर्फ equity और debt इंस्ट्रूमेंट से न होकर आपकी वित्तीय स्थित से भी होता है जो इसमें बड़ी भूमिका अदा करता है। उदाहरण के लिए जब एसेट एलोकेशन की बात होती है तो कोई फाइनेंशियल एडवाइजर की सलाह 25 साल के किसी युवा के लिए अलग होती है जबकि 50 साल के किसी व्यक्ति के लिए उसकी सलाह अलग होती है। इसी तरह किसी किसी शादी शुदा और बच्चों वाले व्यक्ति के लिए फाइनेंशियल एडवाइजर की सलाह कुछ दूसरी होगी जबकि इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न किसी कुंवारे व्यक्ति के लिए वह दूसरी तरह की सलाह देगा।

Scripbox के Prateek Mehta का कहना है कि हर निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता और वित्तीय लक्ष्य अलग होते हैं। अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और अपने गोल हसिल करने के टाइम फ्रेम को ध्यान में रखकर ही किसी निवेशक को ये तय करना चाहिए कि वे इक्विटी या डेट किसी एसेट क्लॉस में अपने पैसे लगाना चाहता है और कितनी मात्रा में निवेश करना चाहता है। अगर आप 1-3 साल की छोटी अवधि के लिए पैसे लगाने चाहते हैं तो पोर्टफोलियो में डेट पर ज्यादा एलोकेशन इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न करें। लेकिन अगर आप लंबे नजरिए से निवेश करते हैं तो पोर्टफोलियो में इक्विटी का हिस्सा ज्यादा रखें।

अपने निवेश को डाइवर्सिफाइ करें

जब आप अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में अलग-अलग निवेश विकल्पों में निश्चित अनुपात में अपने पैसे लगाते हैं तो आपके पूरे पोर्टफोलियो पर जोखिम कम होता है। उदाहरण के लिए अगर आप इक्विटी में 30 फीसदी, इंश्योरेंस में 20 फीसदी, मियादी जमा में 30 फीसदी और रियल इस्टेट में 20 फीसदी पैसे डालते हैं जो शेयरों की कीमतों में किसी गिरावट की स्थित में आपका घाटा सीमित हो जाता है क्योंकि आपके निवेश का 70 फीसदी हिस्सा दूसरे विकल्पों में लगा है। इससे साफ हो जाता है कि पोर्टफोलियो को जोखिम से बचाने में डाइवर्सिफिकेशन का अहम योगदान होता है। लेकिन डाइवर्सिफाइ करने का मतलब ओवर डाइवर्सिफिकेशन (over-diversification) भी इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न नहीं होता इसका ध्यान रखें।

अपने निवेश की नियमित निगरानी करते रहें

अपने निवेश की नियमित निगरानी करते रहें। एक साल पहले की बाजार स्थित में किया गया निवेश हो सकता है आज की स्थिति में उतना फायदेमंद न हो। ऐसा स्थिति में यदि आप अपने निवेश पर नजर नहीं रखते हैं अपने पोर्टफोलियो पर निवेश जोखिम बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में इनवेस्टमेंट होल्डिंग को ट्रैक करना जरूरी हो जाता है। आपको समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो का वैल्यूएशन करते रहना चाहिए जिससे कि बीते समय के साथ अगर आपके पोर्टफोलियों में कोई असंतुलन हो जाता है, तो उसे ठीक किया जा सके।

जोखिम उठाने की क्षमता को पहचाने

बाजार में निवेश करने के लिए हर निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता अलग-अलग होती है। कोई भी निवेश निर्णय लेते समय अपनी उम्र, आय और अपने ऊपर निर्भर लोगों को ध्यान में रखते हुए अपनी जोखिम उठाने की क्षमता तय करें और फिर उसके हिसाब से ही सही निवेश विकल्प अपना कर अपने पैसे लगाएं।

पर्याप्त लिक्विडिटी बनाए रखें

3-12 महीने के खर्च भर का पैसा लिक्विड तौर पर रखें या फिर इनको ऐसे असेट क्लास में लगाएं जिसको तत्काल जरूरत होने पर आप इसे भुना सकें। ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले प्रोडक्ट में पैसे लगाना उस स्थिति में आपके लिए खराब फैसला हो सकता है जब आपको तुरंत पैसों की जरूरत पड़ जाए और जिस असेट में आपने निवेश किया है, वो भारी उतार चढ़ाव के दौर से गुजर रहा हो। ऐसी स्थिति में अगर आप अपने 3-12 महीने के खर्च का पैसा लिक्विड के तौर पर रखते हैं तो आपको अपने हाई बीटा इन्वेस्टमेंट को एकाएक बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ध्यान रखें कि ऐसे निवेशों में जब आप लंबे समय तक बने रहते हैं तभी आपको फायदा मिलेगा।

SIP में लगाएं पैसे

SIP में पैसे लगाकर आप सीधे तौर पर इक्विटी में पैसे लगाने से होने वाले जोखिम को कुछ कम कर सकते हैं। इसके अलावा SIP में निवेश से आपको रूपी कास्ट एवरेजिंग का भी फायदा मिलता है। इसका मतलब ये है कि जब मार्केट डाउन होता है तो आपको ज्यादा यूनिटें मिलती हैं और जब बाजार बढ़त पर होता है, तो आपको कम यूनिटें मिलती हैं। इसके अलावा SIP से आपको बाजार के उतार चढ़ाव से भी सुरक्षा मिलती है और आपके इन्वेस्टमेंट फोर्टफोलियो की ओवर ऑल कमाई बढ़ती है।

म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले जान लें ये तीन रिस्क, फायदे में रहेंगे आप

डायवर्सिफाइड कर अनसिस्टेमेटिक रिस्क को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही सिस्टेमेटिक रिस्क को एक हद तक कम किया जा सकता है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले जान लें ये तीन रिस्क, फायदे में रहेंगे आप

म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) जैसे मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में निवेश करते समय हम सभी को पहले इसमें हमेशा ही मौजूद रहने वाले जोखिमों को समझना होगा और फिर यह भी समझना होगा कि जोखिम को पूरी तरह से नष्ट या समाप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे केवल कम या ट्रांसफर ही किया जा सकता है. रिस्क को ट्रांसफर करने का सीधा सा मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति आवश्यक सीमा तक रिटर्न (Return) प्राप्त करने के लिए अभी जोखिम नहीं लेता है. और अगर प्राप्त राशि सोची गई रकम से कम रह जाती है तो वह बाद में बहुत अधिक जोखिम उठा सकता है. दूसरी ओर जोखिम को कम करने का अर्थ है जहां तक संभव हो इसे कम करना और इस प्रकार परिणाम को सबसे इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न बेहतर स्तर तक ले जाना.

इक्विटी में निवेश करने वाले प्रोडक्ट के लिए दो सबसे चर्चित जोखिम हैं, पहला अनसिस्टेमेटिक रिस्क (सेक्टर या कंपनी पर केंद्रित) और दूसरा सिस्टेमेटिक रिस्ट (पूरे बाजार में इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न निहित जोखिम, उदाहरण के लिए जंग). कई विशेषज्ञ अस्थिरता और जोखिम के बीच के अंतर पर भी प्रकाश डालते हैं. अस्थिरता केवल कीमतों में रोजाना का उतार-चढ़ाव है, जबकि जोखिम को दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों या परिणामों को तैयार करने या प्राप्त करने में असमर्थता के रूप में माना जा सकता है. इस प्रकार, इक्विटी को अस्थिर कहा जा सकता है लेकिन शायद वह जोखिम भरा नहीं है, जबकि एक गारंटेड, पारंपरिक, फिक्स इनकम प्रोडक्ट देखने में स्थिर लेकिन अपेक्षाकृत जोखिम भरे हो सकते हैं.

स्ट्रैटेजी से कम करें रिस्क

पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड (PGIM India Mutual Fund) के सीईओ अजीत मेनन ने कहा, अलग-अलग प्रकार के जोखिमों की बात करें तो इक्विटी में शामिल जोखिमों को कम करने के लिए पर्याप्त रणनीतियां हैं. विभिन्न शेयरों, सेक्टर्स, निवेश शैलियों आदि पर पोर्टफोलियो को एक बिंदु तक डायवर्सिफाइड कर अव्यवस्थित जोखिम को कम किया जा सकता है, जबकि सिर्फ समय सीमा को बढ़ाकर और इक्विटी को पर्याप्त लंबे समय तक होल्ड कर ही व्यवस्थित जोखिम को एक हद तक कम किया जा सकता है. ये दोनों विचार पीजीआईएम इंडिया में हमारे पोर्टफोलियो निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं. हम कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों, कमाई के ट्रैक रिकॉर्ड और स्थिरता, दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य और पूंजी दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि ये कुछ ऐसे कारक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पोर्टफोलियो में जोखिम काफी हद तक कम हो.

स्टॉक को चुनने के लिए हमारा दूसरे स्तर का फिल्टर कम डेट टु इक्विटी रेशियो, पिछली साइकिल में सकारात्मक ऑपरेटिंग कैशफ्लो से लेकर हमारे पोर्टफोलियो में अनिवार्य रूप से तैयार डाउनसाइड प्रोटेक्शन पर आधारित होता है. हम पीईजी अनुपात (मूल्य/आय से वृद्धि) जैसे विभिन्न अन्य मापदंडों को देखते हुए इसमें मदद करते हैं. यह हमें बताता है कि हम इस बात को लेकर सचेत हैं कि हम भविष्य के ग्रोथ पोटेंशियल के लिए आज कितना भुगतान कर रहे हैं.

एक हालिया उदाहरण हमारे प्रोसेस को बखूबी बयां करता है, जिसमें कुछ नए युग की टेक कंपनियों के आईपीओ से दूर रहने के कारण हम बड़ी गिरावट से बचने में सफल रहे हैं. सकारात्मक नकदी प्रवाह पर हमारे इन्वेस्टमेंट फिल्टर ने इस मामले में हमारे पक्ष में काम किया है.

बिहेवियर रिस्क

तीसरे प्रकार का जोखिम जिसके बारे में विशेषज्ञ कम ही बात करते हैं, वह है बिहेवियर रिस्क. यह मनी मैनजर्स और इंन्वस्टर्स दोनों के रूप में हमारे पूर्वाग्रहों से संबंधित है. यह हमें डेटा को निष्पक्ष रूप इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न से देखने से रोकता है और इस तरह त्रुटियां पैदा होती हैं. इनकी वजह से कभी-कभी पूंजी का स्थायी नुकसान हो सकता है. बेहतर रिटर्न की उम्मीद में उन शेयरों को होल्ड करने की प्रवृत्ति, जिनके फंडामेंटल में कमी आने के कारण उनके मूल्य में गिरावट आई है, ऐसा ही एक उदाहरण है. लोकप्रिय रूप से इसे डिसपोजीशन इफेक्ट के रूप में जाना जाता है, यहां हम अपने घाटे वाले शेयरों को अपने पोर्टफोलियो में रखते हुए अपने मुनाफे वाले शेयरों को बेचते हैं.

वास्तव में अन्य पहलू भी हैं जो हमारी मदद करते हैं जैसे इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट टीम जो कि आंतरिक रूप से अपने विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करती है. यह बिहेवियर रिस्क में कमी लाने के लिए भी काम करती है, क्योंकि यहां विचारों पर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण रखते हुए काफी गहन चर्चा की जाती है.

एक और चीज जो हमारे दृष्टिकोण में विस्तार लाती है, वह है हमारी ग्लोबल टीमों से मिलने वाला समर्थन और इनपुट. यह मदद हमें वैश्विक स्तर पर घटने वाली घटनाओं को समझने में मदद करता है, और बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव को और भी बारीकी से समझने में मदद करता है. यह सब मिलकर मात्रात्मक फिल्टर के साथ व्यक्तिगत व्यवहार से जुड़े जोखिम को काफी हद तक कम करने करती हैं. इन फिल्टर्स की चर्चा हमने ऊपर की है.

म्यूचुअल फंड: निवेश पर घटा सकते हैं जोखिम, लॉन्ग टर्म रिटर्न के हिसाब से करें किसी भी फंड का चुनाव

रूस-यूक्रेन संकट के बाद से दुनियाभर के शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव जारी है। इस कारण निवेशक सीधे इक्विटी में पैसा लगाने के बजाय म्यूचुअल फंडों में निवेश कर रहे हैं। हालांकि, म्यूचुअल फंड में निवेश पर भी जोखिम है, लेकिन इसे कम किया जा सकता है। जोखिम कैसे घटाएं, पूरा गणित बताती कालीचरण की रिपोर्ट-

म्यूचुअल फंड (सांकेतिक तस्वीर)

बीपीएन फिनकैप के निदेशक एके निगम का कहना है कि इक्विटी बाजार की तरह म्यूचुअल फंडों में निवेश पर भी जोखिम रहता है। इस जोखिम के कई कारण होते हैं। इनमें घरेलू के साथ वैश्विक कारण भी होते हैं, जिससे म्यूचुअल फंड में निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ता है। हालांकि, फंड मैनेजरों की मदद से और अपनी निवेश रणनीति बदलकर इस जोखिम को कम किया जा सकता है। बाजार में म्यूचुअल फंड की कई योजनाएं उपलब्ध हैं, जिसमें अपने लिए बेहतर का चयन कर निवेश कर सकते हैं।

  • एके निगम का कहना है कि अगर रिटर्न के हिसाब से अपने लिए किसी म्यूचुअल फंड योजना का चुनाव कर रहे हैं तो हमेशा लॉन्ग टर्न रिटर्न देखें।
  • लॉन्ग टर्म यानी 8-10 साल के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो इससे लिवाली और बिकवाली दोनों परिस्थितियों में फंड के प्रदर्शन को समझने में मदद मिलती है।
  • 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड देखें, फंड के पूरे प्रदर्शन को समझने में मिलती है मदद।
  • ऐसे फंड का चयन करें, जिसने कम-से-कम 2-3 साल की अवधि में लगातार बेहतर प्रदर्शन किया हो

अपने जोखिम का आकलन करें
सेबी के मुताबिक, एसेट मैनेजमेंट कंपनी को अपने सभी फंड के लिए रिस्क-ओ-मोटर दिखाना होता है। इसमें म्यूचुअल फंड से जुड़े सभी जोखिम के स्तर के बारे में जानकारी देनी होती है। इससे पहले रिस्क-ओ-मीटर में किसी खास श्रेणी से जुड़े जोखिम को दिखाया जाता था, लेकिन इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न अब किसी फंड में निवेश से पहले इस मीटर से जांच लें कि किस फंड से जुड़ा जोखिम आपकी क्षमता के अनुकूल है। इसका स्तर लिक्विडिटी, क्रेडिट, ब्याज दर, बाजार पूंजीकरण और उतार-चढ़ाव इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न जैसे जोखिमों के आधार पर तय होती है।

सभी एनएफओ में निवेश से बचें
पूंजी जुटाने के लिए एएमसी न्यू फंड ऑफर (एनओफओ) लाती हैं। िवेशक अधिक रिटर्न के लिए एनएफओ में निवेश करते हैं। हालांकि, सभी एनएफओ में निवेश से बचना चाहिए। ये नए ऑफर होते हैं और इनके बारे में अधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं होती है। इसलिए सावधानी से इसमें निवेश करना चाहिए। यह भी देखना देना है कि इनमें क्या नया है और लागत कितनी है।

लार्जकैप में लगाएं पैसा
मिडकैप और स्मॉलकैप में निवेश पर अधिक रिटर्न मिलने की संभावना रहती है, लेकिन इसमें जोखिम भी अधिक रहता है। लार्जकैप में निवेश इसलिए बेहतर है क्योंकि बाजार की गिरावट के दौरान भी इसका प्रदर्शन बेहतर रहता है।

लार्जकैप में निवेश का पैसा उन बड़ी कंपनियों में लगाया जाता है, जिनकी अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ होती है। अगर बाजार की गिरावट के दौरान इनमें नरमी आती भी है तो कुछ समय बाद इनके शेयर चढ़ जाते हैं।

फंडामेंटल की जांच जरूर करें
किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले इसका फंडामेंटल जरूर जांच लें। फंड के पोर्टफोलियो में देख लें कि यह कितना मजबूत है और इसका पैसा सभी सेक्टर्स की टॉप कंपनियों में लगा है या नहीं। कमजोर फंडामेंटल वाले फंड में निवेश से शॉर्ट टर्म में थोड़ा मुनाफा हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता है। -अतुल गर्ग, निवेश सलाहकार

विस्तार

बीपीएन फिनकैप के निदेशक एके निगम का कहना है कि इक्विटी बाजार की तरह म्यूचुअल फंडों में निवेश पर भी जोखिम रहता है। इस जोखिम के कई कारण होते हैं। इनमें घरेलू के साथ वैश्विक कारण भी होते हैं, जिससे म्यूचुअल फंड में निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ता है। हालांकि, फंड मैनेजरों की मदद से और अपनी निवेश रणनीति बदलकर इस जोखिम को कम किया जा सकता है। बाजार में म्यूचुअल फंड की कई योजनाएं उपलब्ध हैं, जिसमें अपने लिए बेहतर का चयन कर निवेश कर सकते हैं।

  • एके निगम का कहना है कि अगर रिटर्न के हिसाब से अपने लिए किसी म्यूचुअल फंड योजना का चुनाव कर रहे हैं तो हमेशा लॉन्ग टर्न रिटर्न देखें।

अपने जोखिम का आकलन करें
सेबी के मुताबिक, एसेट मैनेजमेंट कंपनी को अपने सभी फंड के लिए रिस्क-ओ-मोटर दिखाना होता है। इसमें म्यूचुअल फंड से जुड़े सभी जोखिम के स्तर के बारे में जानकारी देनी होती है। इससे पहले रिस्क-ओ-मीटर में किसी खास श्रेणी से जुड़े जोखिम को दिखाया जाता था, लेकिन अब किसी फंड में निवेश से पहले इस मीटर से जांच लें कि किस फंड से जुड़ा जोखिम आपकी क्षमता के अनुकूल है। इसका स्तर लिक्विडिटी, क्रेडिट, ब्याज दर, बाजार पूंजीकरण और उतार-चढ़ाव जैसे जोखिमों के आधार पर तय होती है।

सभी एनएफओ में निवेश से बचें
पूंजी जुटाने के लिए एएमसी न्यू फंड ऑफर (एनओफओ) लाती हैं। िवेशक अधिक रिटर्न के लिए एनएफओ में निवेश करते हैं। हालांकि, सभी एनएफओ में निवेश से बचना चाहिए। ये नए ऑफर होते हैं और इनके बारे में अधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं होती है। इसलिए सावधानी से इसमें निवेश करना चाहिए। यह भी देखना देना है कि इनमें क्या नया है और लागत कितनी है।

लार्जकैप में लगाएं पैसा
मिडकैप और स्मॉलकैप में निवेश पर अधिक रिटर्न मिलने की संभावना रहती है, लेकिन इसमें जोखिम भी अधिक रहता है। लार्जकैप में निवेश इसलिए बेहतर है क्योंकि बाजार की गिरावट के दौरान भी इसका प्रदर्शन बेहतर रहता है।

लार्जकैप में निवेश का पैसा उन बड़ी कंपनियों में लगाया जाता है, जिनकी अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ होती है। अगर बाजार की गिरावट के दौरान इनमें नरमी आती भी है तो कुछ समय बाद इनके शेयर चढ़ जाते हैं।

फंडामेंटल की जांच जरूर करें
किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले इसका फंडामेंटल जरूर जांच लें। फंड के पोर्टफोलियो में देख लें कि यह कितना मजबूत है और इसका पैसा सभी सेक्टर्स की टॉप कंपनियों में लगा है या नहीं। कमजोर फंडामेंटल वाले फंड में निवेश से शॉर्ट टर्म में थोड़ा मुनाफा हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता है। -अतुल गर्ग, निवेश सलाहकार

इक्विटी में निवेश की है प्‍लानिंग, इन तरीकों से पा सकते हैं बेहतर रिटर्न; जानिए डिटेल

Stock Investment Planning: अगर आप भी इक्विटी निवेश की प्‍लानिंग कर रहे हैं तो कुछ तरीकों से आप अपने इक्विटी निवेश पर अच्‍छा मुनाफा कमा सकते हैं।

इक्विटी में निवेश की है प्‍लानिंग, इन तरीकों से पा सकते हैं बेहतर रिटर्न; जानिए डिटेल

जानिए कैसे करें इक्विटी में निवेश की प्‍लानिंग (फोटो-Freepik)

भविष्‍य की चिंताओं और पैसे की जरूरत को लेकर लोग तरह-तरह के इक्विटी निवेश में जोखिम और रिटर्न निवेश की प्‍लानिंग करते हैं। कोई सरकारी योजनाओं में पैसा निवेश करता है तो वही कोई शेयर मार्केट में पैसा लगाता है। साथ ही इक्विटी निवेश की भी तैयारी लोगों की ओर से की जाती है। अगर आप भी इक्विटी निवेश की प्‍लानिंग कर रहे हैं तो कुछ तरीकों से आप अपने इक्विटी निवेश पर अच्‍छा मुनाफा कमा सकते हैं।

फंड की अनिश्चितता

निवेश करने पर भविष्‍य में बेहतर रिटर्न मिलता है, इस कारण मुनाफे का एक अनुमान लगाया जा सकता है। खासकर इक्विटी फंड में निवेश की निश्चितता नहीं है। इसलिए सलाह दी जाती है कि बेहतर इक्विटी फंड का चयन करके ही निवेश करना चाहिए।

एक अच्‍छा प्रॉसेस

उन प्रॉसेस पर आपको विशेष ध्‍यान देना चाहिए, जिन्हें आप इक्विटी फंड चुनने के लिए अपनाते हैं। वह समय बिंदु जिस पर आप निवेश करते हैं और वह अवधि जिसके लिए आप निवेश करते हैं। आप एक अच्छे प्रॉसेस का उपयोग करके अपने निवेश को उच्च जोखिम से बचा सकते हैं और निवेश पर मार्केट लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।

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ऐतिहासिक रिटर्न

ऐतिहासिक रिटर्न को देखना सबसे आसान काम है। जब इक्विटी की बात आती है, तो रिटर्न बहुत अस्थिर हो सकता है। आप ऐसे फंड का चयन करें, जो मार्केट में अच्‍छा वैल्‍यू रखता हो और जिसपर आपको अच्‍छा रिटर्न मिलने का अनुमान हो। हालाकि इसके बारे में आपको अच्‍छे से जानकारी ले लेना चाहिए।

ज्‍यादा फंड रखना

यदि आप अपने निवेश में विविधता लाते हैं तो आपके पास इक्विटी शेयरों का एक समूह होगा। आप जितना अधिक निवेश करते हैं, आपको उतना ही अधिक मुनाफा मिलने की उम्‍मीद होती है।

लंबी अवधि के लिए एसआईपी का चयन

अगर आप एक समय में बहुत अधिक पैसा लगाए बिना लगातार निवेश करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह बाजार चक्रों में लंबी अवधि के लिए निवेशित रहता है, तो आपका रिटर्न लंबी अवधि के औसत के करीब होने की संभावना है। ऐसे निवेश के लिए एसआईपी का उपयोग करके हासिल किया जा सकता है।

लंबे समय तक टिके रहना

अगर आपका इक्विटी शेयर मजबूत है और आगे रिटर्न मिलने के चांस अ‍च्‍छे हैं तो इक्विटी निवेश से लंबी अवधि का रिटर्न मुद्रास्फीति के आंकड़ों को मात दे सकता है। इसमें आपको अच्‍छा रिटर्न मिल सकता है, साथ ही लंबे समय तक टिके रहने पर परिसंपत्तियों में निवेश करने और अधिक रिटर्न अर्जित करने में सक्षम बनाती है। इस व्यवसाय जोखिम की भरपाई इक्विटी निवेश पर जोखिम प्रीमियम द्वारा की जाती है।

स्थिर रिटर्न की उम्मीद न करें

भारत में व्यवस्थित रूप से निवेश करने से औसत लंबी अवधि का रिटर्न लगभग 14-16% रहा है। अगर भविष्य में महंगाई कम होती है तो इसमें कमी आएगी। यह भी गंभीर अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के अधीन होगा। इसलिए, हर साल एक स्थिर रिटर्न कमाने की उम्मीद न करें बल्कि उतार-चढ़ाव की उम्मीद करें, जो समय के साथ औसत हो जाते हैं।

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