आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Role of Foreign Trade in Economic Development | Hindi

आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about the role of foreign trade in economic development.

आर्थिक विकास में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका विचारणीय है । इसने विकास के इंजन के रूप में कार्य किया है, जैसा कि उन्नीसवीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में और बीसवीं शताब्दी में जापान में देखा गया है ।

यहां तक कि आजकल भी एशिया की नई उद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं जैसे हांगकांग, सिंगापुर, ताइवान और दक्षिणी कोरिया आदि द्वारा अपनायी गयी बाह्य-प्रवृतिक विकास नीति ने निर्धन अल्प विकसित देशों को कम साधनों से निपटने के योग्य बनाया है ।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अनेक प्रकार से आर्थिक विकास में योगदान करता है:

1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पूंजीगत वस्तुओं के आयात के साधन खोजने में सहायता करता है जिनके बिना आर्थिक विकास की कोई प्रक्रिया आरम्भ नहीं हो सकती ।

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कीमत स्थायित्व को सुविधाजनक बनाता है । मांग और पूर्ति का असन्तुलन जो विकास को आरम्भिक सोपानों में रोकता है उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के यन्त्र द्वारा समाप्त किया जा सकता है ।

3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, आयातों से प्रतिस्पर्द्धी दबावों द्वारा गतिशील परिवर्तन के लिये दबाव, निर्यात बाजारों के लिये प्रतिस्पर्द्धा का दबाव और साधनों के बेहतर निर्धारण उत्पन्न करता है ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार क्षमता के पूर्ण उपभोग और परिमाप की मितव्ययताओं की पूर्ण उपयुक्तता की इजाजत देता है ।

तथापि, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की कुछ विशेष कठिनाइयां हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है:

1. आरम्भिक वस्तुओं की धीमी गति (Slow Pace of Primary Commodities):

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मार्ग में आने वाली मुख्य कठिनाई आरम्भिक वस्तुओं की वृद्धि विश्व बाजार की तुलना में धीमी है जो अल्प विकसित देशों के निर्यात का मुख्य भाग है । सन् 1955 में प्राथमिक वस्तुएं कुल निर्यात का 50 प्रतिशत भाग थी जो सन् 1977 में 35 प्रतिशत तक नीचे आ गई तथा पुन: 1990 में घट कर 28 प्रतिशत रह गई ।

इसके लिये उत्तरदायी कारण है बाजार मितव्ययताओं की अपनी कृषि की सुरक्षा की बढ़ती हुई प्रवृत्ति, प्राथमिक वस्तुओं की मांग में अपर्याप्त वृद्धि, कृत्रिम प्रतिस्थापनों का विकास आदि ।

2. विश्व व्यापार में कम भाग (Less Share in World Trade):

देखा गया है कि विकासशील देशों के निर्यात धीमे हैं । फलत: कुल विश्व व्यापार में विकासशील देशों का भाग निम्न प्रवृत्ति का रहा है । इसका भाग जो सन् 1950 में 31 प्रतिशत था, सन् 1960 में 13.9 प्रतिशत तक आ गया और 1990 में 5 प्रतिशत रह गया ।

गिरावट का कारण है व्यापार ब्लॉकों की उत्पत्ति, प्रतिबंधक व्यापारिक नीतियां और एकाधिकारों की वृद्धि आदि । यह प्रवृत्तियां इस तथ्य को दर्शाती हैं कि विकासशील देशों को विकास के मार्ग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बाधा के रूप में सामना करना पड़ता है ।

3. व्यापार की बुरी शर्तें (Worse Terms of Trade):

विकसित बाजारों में, प्राथमिक उत्पादों की कम मांग ने विकासशील देशों में भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति को बिगाड़ दिया है । निर्मित वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं जबकि प्रारम्भिक वस्तुओं की कीमतें धीरे-धीरे कम हो रही हैं ।

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार, पहले विकासशील देश दो टन चीनी निर्यात करके एक ट्रैक्टर खरीद लेते थे अब उन्हें वही ट्रैक्टर प्राप्त करने के लिये सात टन चीनी निर्यात करनी पड़ती है । एक अन्य अनुमान के अनुसार, सन् 1980 के दशक में विकासशील देशों ने तेल को छोड़ कर अन्य कच्चे माल की कीमतों में गिरावट के करण 1 से 3 प्रतिशत तक कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) खो दिया ।

4. प्रतिबन्धक व्यापार नीतियां (Restrictive Trade Policies):

औद्योगिक देशों द्वारा अपनाई गई प्रतिबन्धक व्यापार नीतियां विकासशील देशों के निर्मित वस्तुओं के निर्यात की सम्भावनाओं को प्रभावित करती हैं । यह इस तथ्य के कारण है कि विकासशील देशों के लिये औद्योगिक देशों के बाजार अधिक महत्त्वपूर्ण हो गये हैं ।

उदाहरण के रूप में, सन् 1965 विदेशी व्यापार का महत्व में, औद्योगिक देशों ने विकासशील देशों की निर्मित वस्तुओं के निर्यात का 41 प्रतिशत लिया । सन् 1990 में यह 75% तक बढ़ गया । सन् 1990 में निर्मित वस्तुओं के विश्व व्यापार का केवल 3 प्रतिशत विकासशील देशों के बीच था ।

संक्षेप में हम निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं कि विकासशील अर्थव्यवस्थाएं विदेशी व्यापार के मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करती है । इन समस्याओं के समाधान के अनेक बहुराष्ट्रीय प्रयत्न असफल रहे हैं ।

इसलिये, विद्यमान परिस्थितियों में, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को एक प्रासंगिक मिश्रित व्यापार नीति तैयार करनी पड़ी है जो निर्यातों की रचना कर सकती है ओर आवश्यक आयातों की पूर्ति सुनिश्चित विदेशी व्यापार का महत्व कर सकती है ।

आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Role of Foreign Trade in Economic Development | Hindi

आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about the role of foreign trade in economic development.

आर्थिक विकास में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका विचारणीय है । इसने विकास के इंजन के रूप में कार्य किया है, जैसा कि उन्नीसवीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में और बीसवीं शताब्दी में जापान में देखा गया है ।

यहां तक कि आजकल भी एशिया की नई उद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं जैसे हांगकांग, सिंगापुर, ताइवान और दक्षिणी कोरिया आदि द्वारा अपनायी गयी बाह्य-प्रवृतिक विकास नीति ने निर्धन अल्प विकसित देशों को कम साधनों से निपटने के योग्य बनाया है ।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अनेक प्रकार से आर्थिक विकास में योगदान करता है:

1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पूंजीगत वस्तुओं के आयात के साधन खोजने में सहायता करता है जिनके बिना आर्थिक विकास की कोई प्रक्रिया आरम्भ नहीं हो सकती ।

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कीमत स्थायित्व को सुविधाजनक बनाता है । मांग और पूर्ति का असन्तुलन जो विकास को आरम्भिक सोपानों में रोकता है उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के यन्त्र द्वारा समाप्त किया जा सकता है ।

3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, आयातों से प्रतिस्पर्द्धी दबावों द्वारा गतिशील परिवर्तन के लिये दबाव, निर्यात बाजारों के लिये प्रतिस्पर्द्धा का दबाव और साधनों के बेहतर निर्धारण उत्पन्न करता है ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार क्षमता के पूर्ण उपभोग और परिमाप की मितव्ययताओं की पूर्ण उपयुक्तता की इजाजत देता है ।

तथापि, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की कुछ विशेष कठिनाइयां हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है:

1. आरम्भिक वस्तुओं की धीमी गति (Slow Pace of Primary Commodities):

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मार्ग में आने वाली मुख्य कठिनाई आरम्भिक वस्तुओं की वृद्धि विश्व बाजार की तुलना में धीमी है जो अल्प विकसित देशों के निर्यात का मुख्य भाग है । सन् 1955 में प्राथमिक वस्तुएं कुल निर्यात का 50 प्रतिशत भाग थी जो सन् 1977 में 35 प्रतिशत तक नीचे आ गई तथा पुन: 1990 में घट कर 28 प्रतिशत रह गई ।

इसके लिये उत्तरदायी कारण है बाजार मितव्ययताओं की अपनी कृषि की सुरक्षा की बढ़ती हुई प्रवृत्ति, प्राथमिक वस्तुओं की मांग में अपर्याप्त वृद्धि, कृत्रिम प्रतिस्थापनों का विकास आदि ।

2. विश्व व्यापार में कम भाग (Less Share in World Trade):

देखा गया है कि विकासशील देशों के निर्यात धीमे हैं । फलत: कुल विश्व व्यापार में विकासशील देशों का भाग निम्न प्रवृत्ति का रहा है । इसका भाग जो सन् 1950 में 31 प्रतिशत था, सन् 1960 में 13.9 प्रतिशत तक आ गया और 1990 में 5 प्रतिशत रह गया ।

गिरावट का कारण है व्यापार ब्लॉकों की उत्पत्ति, प्रतिबंधक व्यापारिक नीतियां और एकाधिकारों की वृद्धि आदि । यह प्रवृत्तियां इस तथ्य को दर्शाती हैं कि विकासशील देशों को विकास के मार्ग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बाधा के रूप में सामना करना विदेशी व्यापार का महत्व पड़ता है ।

3. व्यापार की बुरी शर्तें (Worse Terms of Trade):

विकसित बाजारों में, प्राथमिक उत्पादों की कम मांग ने विकासशील देशों में भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति को बिगाड़ दिया है । निर्मित वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं जबकि प्रारम्भिक वस्तुओं की कीमतें धीरे-धीरे कम हो रही हैं ।

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार, पहले विकासशील देश दो टन चीनी निर्यात करके एक ट्रैक्टर खरीद लेते थे अब उन्हें वही ट्रैक्टर प्राप्त करने के लिये सात टन चीनी निर्यात करनी पड़ती है । एक अन्य अनुमान के अनुसार, सन् 1980 के दशक में विकासशील देशों ने तेल को छोड़ कर अन्य कच्चे माल की कीमतों में गिरावट के करण 1 से 3 प्रतिशत तक कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) खो दिया ।

4. प्रतिबन्धक व्यापार नीतियां (Restrictive Trade Policies):

औद्योगिक देशों द्वारा अपनाई गई प्रतिबन्धक व्यापार नीतियां विकासशील देशों के निर्मित वस्तुओं के निर्यात की सम्भावनाओं को प्रभावित करती हैं । यह इस तथ्य के कारण है कि विकासशील देशों के लिये औद्योगिक देशों के बाजार अधिक महत्त्वपूर्ण हो गये हैं ।

उदाहरण के रूप में, सन् 1965 में, औद्योगिक देशों ने विकासशील देशों की निर्मित वस्तुओं के निर्यात का 41 प्रतिशत लिया । सन् 1990 में यह 75% तक बढ़ गया । सन् 1990 में निर्मित वस्तुओं के विश्व व्यापार का केवल 3 प्रतिशत विकासशील देशों के बीच था ।

संक्षेप में हम निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं कि विकासशील अर्थव्यवस्थाएं विदेशी व्यापार के मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करती है । इन समस्याओं के समाधान के अनेक बहुराष्ट्रीय प्रयत्न असफल रहे हैं ।

इसलिये, विद्यमान परिस्थितियों में, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को एक प्रासंगिक मिश्रित व्यापार नीति तैयार करनी पड़ी है जो निर्यातों की रचना कर सकती है ओर आवश्यक आयातों की पूर्ति सुनिश्चित कर सकती है ।

भारत में विदेश व्यापार पर निबंध

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विभिन्न देशों के बीच किये जाने वाले व्यापार विदेशी व्यापार के रूप में समझा जा सकता है। देश के बाहर वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है। इसे विदेशी व्यापार के रूप में भी जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय या विदेशी व्यापार में भाग लेने वाले सभी देश, विदेश से उन वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं जो वे उत्पादन करने के लिए कम कुशल हैं या बिल्कुल भी उत्पादन नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार, वे उन वस्तुओं के उत्पादों का निर्यात करते हैं, जो श्रम शक्ति की विशेषता के कारण उनमे अधिक कुशल हैं। किसी देश की आर्थिक उन्नति की प्रक्रिया को तेज करने में विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण भूमिका होता है।भारत के विदेशी व्यापार की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता की से चला आ रहा है।

हालाँकि, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के संगठित प्रयास स्वतंत्रता के बाद ही किए गए, जिसकी शुरुआत आर्थिक नियोजन की नीतियों के साथ हुई थी । भारतीय आर्थिक नियोजन निति को पाँच दशक पूरे हो गए है | इस दौरान, भारत के विदेशी व्यापार के मूल्य, संरचना और दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने के लिए व्यापार और सामाजिक क्षेत्र के संबंध में सुधारों की एक पहल शुरू की गई थी।

भारत तेजी से एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है, जो अपने विशाल प्राकृतिक संसाधनों और कुशल जनशक्ति पर निर्भर है।भारतीय उत्पादों और सेवाओं को आज विश्व स्तर पर प्रतियोगिता मुल्क के रूप में देखा जाता है।अत्याधुनिक तकनीक के साथ संयुक्त, भारतीय व्यापार बाजार दुनिया भर में अपनी उपस्थिति का लोहा मनवा रहा है। अधिकांश देशो में व्यापार की सुधारों की तरह भारत ने भी व्यापार व्यवस्थाओं को उदार बनाने और शुल्क में कटौती पर अच्छी प्रगति की है।

भारत में होने वाले व्यापार और अन्य सुधारों का उल्लेख किया गया है। व्यापारिक दृष्टि से माना गया है कि सम्पूर्ण आर्थिक विकास और गरीबी को मिटने के लिए मजबूत निर्यात महत्वपूर्ण हैं। निर्यात-आधारित विकास इसी कारण से भारत में व्यापार एक महत्वपूर्ण ताकत बन गया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ, भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाजारों में मजबूत निर्यात की बढ़ोतरी दर्ज की है। भारतीय सरकार अतिरिक्त सुधारों को लागू करने और महत्वपूर्ण बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय व्यापार, विकास का समर्थन और गरीबों को लाभ पहुंचा सके। व्यापार सुधारों के साथ विकास के तरफ बढ़ना अधिक जटिल हो गया है क्योंकि इन सुधारों का रोजगार, आय वितरण, गरीबी पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आंकलन भी बहुत ज़रूरी है। भारतीय व्यापार बाजार ने विश्व के साथ मिलकर एक साथ काम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है।

व्यापर के मामले में भारत उतना ही मजबूत है जितना कोई और देश । इसके कई कारण उल्लेखनीय है जैसे बुनियादी ढांचे में तेजी से सुधार, कई जिम्मेदारियों को एक साथ करने की क्षमता और उच्च गतिविधियों का समर्थन करने की हमारी अचूक क्षमता है।

विदेश व्यापार के प्रकार:

विदेशी व्यापार को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

जब किसी विदेशी देश से सामने की खरीदारी की जाता है, तो उसे आयात व्यापार विदेशी व्यापार का महत्व के रूप में जाना जाता है।

  • निर्यात व्यापार:

जब सामान दूसरे देशों को बेचा जाता है, तो इस तरह के व्यापर को निर्यात व्यापार कहा जाता है।

  • एंट्रपोट व्यापार:

कभी-कभी एक देश से दूसरे देशों में निर्यात करने के उद्देश्य से माल आयात किया जाता है, इसे एंट्रपोट व्यापर कहा जाता है।

विदेश व्यापार के लाभ:

  1. प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग:

विदेशी व्यापार प्राकृतिक संसाधन के उचित उपयोग प्रदान करता है। अधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन रखने वाले देश अन्य देशों में कच्चे माल, निर्मित माल या अर्ध-निर्मित माल का निर्यात या बिक्री करके अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकते हैं।

  • जीवन स्तर में सुधार:

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करता है। दुनिया के देशों के बीच सामानों के आदान-प्रदान से जीवन स्तर ऊँचा होता है।

  • सभी प्रकार की वस्तुओं की उपलब्धता:

विदेश व्यापार ऐसे देश के लोगों को वस्तुएं प्रदान करता है जो उस देश में आर्थिक रूप से उत्पादित नहीं हो सकते हैं।

  • कीमतों में स्थिरता:

विदेशी व्यापार दुनिया भर में वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता लाता है। विदेशी व्यापार के अभाव में यह संभव नहीं है।

  • अधिक उत्पादन का निर्यात:

विदेशी व्यापार अधिक उत्पादन को निर्यात करने की सुविधा देता है। इस प्रकार संसाधनों को नष्ट होने से बचाया जाता है।

निष्कर्ष :

विदेशी व्यापार में कई चुनौतियां हैं। भारत ने मजबूत विदेशी व्यापार नीतियों को बनाया है और समय-समय पर इनका सुधार किया है | विदेश व्यापार बढ़ोतरी और विकास को बढ़ाने में सहायता करता है।भारत के दुनिया के सभी विकसित देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। यह भारत की वित्तीय स्थिति को बढ़ा रहा है।

भारत में विदेश व्यापार पर निबंध

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विभिन्न देशों के बीच किये जाने वाले व्यापार विदेशी व्यापार के रूप में समझा जा सकता है। देश के बाहर वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है। इसे विदेशी व्यापार के रूप में भी जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय या विदेशी व्यापार में भाग लेने वाले सभी देश, विदेश से उन वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं जो वे उत्पादन करने के लिए कम कुशल हैं या बिल्कुल भी उत्पादन नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार, वे उन वस्तुओं के उत्पादों का निर्यात करते हैं, जो श्रम शक्ति की विशेषता के कारण उनमे अधिक कुशल हैं। किसी देश की आर्थिक उन्नति की प्रक्रिया को तेज करने में विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण भूमिका होता है।भारत के विदेशी व्यापार की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता की से चला आ रहा है।

हालाँकि, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के संगठित प्रयास स्वतंत्रता के बाद ही किए गए, जिसकी शुरुआत आर्थिक नियोजन की नीतियों के साथ हुई थी । भारतीय आर्थिक नियोजन निति को पाँच दशक पूरे हो गए है | इस दौरान, भारत के विदेशी व्यापार के मूल्य, संरचना और दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने के लिए व्यापार और सामाजिक क्षेत्र के संबंध में सुधारों की एक पहल शुरू की गई थी।

भारत तेजी से एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है, जो अपने विशाल प्राकृतिक संसाधनों और कुशल जनशक्ति पर निर्भर है।भारतीय उत्पादों और सेवाओं को आज विश्व स्तर पर प्रतियोगिता मुल्क के रूप में देखा जाता है।अत्याधुनिक तकनीक के साथ संयुक्त, भारतीय विदेशी व्यापार का महत्व व्यापार बाजार दुनिया भर में अपनी उपस्थिति का लोहा मनवा रहा है। अधिकांश देशो में व्यापार की सुधारों की तरह भारत ने भी व्यापार व्यवस्थाओं को उदार बनाने और शुल्क में कटौती पर अच्छी प्रगति विदेशी व्यापार का महत्व की है।

भारत में होने वाले व्यापार और अन्य सुधारों का उल्लेख किया गया है। व्यापारिक दृष्टि से माना गया है कि सम्पूर्ण आर्थिक विकास और गरीबी को मिटने के लिए मजबूत निर्यात महत्वपूर्ण हैं। निर्यात-आधारित विदेशी व्यापार का महत्व विकास इसी कारण से भारत में व्यापार एक महत्वपूर्ण ताकत बन गया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ, भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाजारों में मजबूत निर्यात की बढ़ोतरी दर्ज की है। भारतीय सरकार अतिरिक्त सुधारों को लागू करने और महत्वपूर्ण बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय व्यापार, विकास का समर्थन और गरीबों को लाभ पहुंचा सके। व्यापार सुधारों के साथ विकास के तरफ बढ़ना अधिक जटिल हो गया है क्योंकि इन सुधारों का रोजगार, आय वितरण, गरीबी पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आंकलन भी बहुत ज़रूरी है। भारतीय व्यापार बाजार ने विश्व के साथ मिलकर एक साथ काम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है।

व्यापर के मामले में भारत उतना ही मजबूत है जितना कोई और देश । इसके कई कारण उल्लेखनीय है जैसे बुनियादी ढांचे में तेजी से सुधार, कई जिम्मेदारियों को एक साथ करने की क्षमता और उच्च गतिविधियों का समर्थन करने की हमारी अचूक क्षमता है।

विदेश व्यापार के प्रकार:

विदेशी व्यापार को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

जब किसी विदेशी देश से सामने की खरीदारी की जाता है, तो उसे आयात व्यापार के रूप में जाना जाता है।

  • निर्यात व्यापार:

जब सामान दूसरे देशों को बेचा जाता है, तो इस तरह के व्यापर को निर्यात व्यापार कहा जाता है।

  • एंट्रपोट व्यापार:

कभी-कभी एक देश से दूसरे देशों में निर्यात करने के उद्देश्य से माल आयात किया जाता है, इसे एंट्रपोट व्यापर कहा जाता है।

विदेश व्यापार के लाभ:

  1. प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग:

विदेशी व्यापार प्राकृतिक संसाधन के उचित उपयोग प्रदान करता है। अधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन रखने वाले देश अन्य देशों में कच्चे माल, निर्मित माल या अर्ध-निर्मित माल का निर्यात या बिक्री करके अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकते हैं।

  • जीवन स्तर में सुधार:

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करता है। दुनिया के देशों के बीच सामानों के आदान-प्रदान से जीवन स्तर ऊँचा होता है।

  • सभी प्रकार की वस्तुओं की उपलब्धता:

विदेश व्यापार ऐसे देश के लोगों को वस्तुएं प्रदान करता है जो उस देश में आर्थिक रूप से उत्पादित नहीं हो सकते हैं।

  • कीमतों में स्थिरता:

विदेशी व्यापार दुनिया भर में वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता लाता है। विदेशी व्यापार के अभाव में यह संभव नहीं है।

  • अधिक उत्पादन का निर्यात:

विदेशी व्यापार अधिक विदेशी व्यापार का महत्व उत्पादन को निर्यात करने की सुविधा देता है। इस प्रकार संसाधनों को नष्ट होने से बचाया जाता है।

निष्कर्ष :

विदेशी व्यापार में कई चुनौतियां हैं। भारत ने मजबूत विदेशी व्यापार नीतियों को बनाया है और समय-समय पर इनका सुधार किया है | विदेश व्यापार बढ़ोतरी और विकास को बढ़ाने में सहायता करता है।भारत के दुनिया के सभी विकसित देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। यह भारत की वित्तीय स्थिति को बढ़ा रहा है।

विदेशी बाजार में विनिमय बिल का महत्व - Importance of Bills of Exchange in Foreign Trade in Hindi

विदेशी बाजार में विनिमय बिल के माध्यम से भुगतान करना एक लोकप्रिय विधि है। इस विधि का महत्व निम्नलिखित है :

1. बैंक के लिए महत्व - बैंक विदेशी व्यापार में न केवल एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करते है बल्कि वित्त प्रदान करने वाले स्त्रोत का कार्य भी करते है। उन्हें बिलों के प्रस्तुतिकरण, स्वीकृति तथा कटौती के लिए ग्राहकों से लाभ के रूप में कमीशन प्राप्त होता है। इसके साथ ही बैंकों को एक लाभ यह भी मिलता है कि अगर उन्हें नकद राशि विदेशी व्यापार का महत्व की आवश्यकता हो तो वे इन्हें दोबारा कटौती पर भुना सकते है। इससे इनके कोषों की तरलता बनी रहती है।


विदेशी बाजार में विनिमय बिल का महत्व
विदेशी बाजार में विनिमय बिल का महत्व

2. विदेशी व्यापार में सहायक - विदेशी विनिमय बिलों विदेशी व्यापार का महत्व के प्रयोग से व्यापार को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला है। विनिमय पत्रों की प्रक्रिया सीधी एवं सरल होने के कारण वर्तमान में, विदेशी व्यापार के लिए इनका प्रयोग काफी बढ़ गया है।

3. भुगतान की निश्चित तिथि - इसमे आयातक तथा निर्यातक दोनो को ही भुगतान की तिथि का ज्ञान होता है। इससे दोनों ही अपनी वित्तीय योजना उचित प्रकार से तैयार कर सकते है।


4. आयातक के लिए सहायक - विनिमय बिलों का आयातक के लिए विशेष महत्व है। इनके माध्यम से वह उधार माल का क्रय कर सकता है। इनकी सहायता से उसे वस्तु की सुपुर्दगी आसानी से मिल जाती है। इसके अतिरिक्त उसे भुगतान करने के लिए 3-4 माह का समय भी मिल सकता है। अगर माल इस अवधि में न भी बिके तो वह अन्य साधनों से धन का प्रबंध कर सकता है।


5. निर्यातक के लिए महत्व - निर्यातक के लिए भी विनिमय बिलों का विशेष महत्व है क्योंकि एक आयातकर्ता हमेशा उधार माल खरीदना ही पसन्द करता है। बिल के द्वारा माल बेचने पर निर्यातक के विक्रयों में वृद्धि होती है। माल कर रवाना होते ही वह आयातकर्ता पर बिल लिख देता है तथा इस बिल की कटौती कराकर वह तुरंत भुगतान प्राप्त कर लेता है। बिल के स्वीकार हो जाने पर निर्यातक के पास यह लिखित प्रमाण हो जाता है कि आयातक उसमे लिखित राशि के लिए उसका ऋणी है।

6. उधार माल क्रय करने में सुविधा - विनिमय बिलों की सहायता से उधार माल क्रय करने में भी पर्याप्त सुविधा रहती है। इसी कारण व्यापारिक क्षेत्र में विनिमय पत्रों का महत्व बढ़ाया जा रहा है।


7. समय बचत - भुगतान की तिथि निश्चित होने के कारण निर्यातकर्ता को बार बार आयातकर्ता के पास रुपया मांगने के लिए नही जाना पड़ता जिससे समय की बचत होती है।


8. आर्थिक सहायता - सहायतार्थ बिलों के माध्यम से व्यापारी एक दूसरे की सहायता करते है। इस प्रकार वे आर्थिक संकट से बच जाते है।

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