गवर्नर ने कहा, ‘‘डॉलर में मजबूती के इस अध्याय के बीच अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये का उतार-चढ़ाव सबसे कम रहा है।’’
एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज
नरेंद्र मोदी एक वर्ष पहले मुंबई के शिवाजी पार्क में एक रैली को संबोधित करते हुए इस बात पर नाराज हुए थे कि उनसे शुरुआती छह महीने के कार्यकाल का हिसाब वे लोग मांग रहे हैं जो देश पर 60 साल राज कर चुके। लेकिन एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज अब 18 महीने के कार्यकाल के बाद मोदी ने अपने काम का विस्तृत ब्योरा देना शुरू कर दिया है। उन्होंने दिल्ली में आयोजित आर्थिक सम्मेलन, क्वालालंपुर में आसियान कारोबार शिखर बैठक और अन्य जगहों पर ऐसा किया। यह कितना अच्छा या बुरा रहा? अर्थव्यवस्था पहले के मुकाबले अधिक स्थिर है।
मुद्रास्फीति कम है, राजकोषीय और चालू खाते का घाटा कम हुआ है और विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हुआ है (हालांकि विदेशी ऋण भी बढ़ा है)। इनमें से कई बातों के लिए तेल कीमतों में गिरावट जिम्मेदार है लेकिन सरकार को इस बात का श्रेय मिलना चाहिए कि उसने अवसर का लाभ उठाकर डीजल कीमतों को नियंत्रणमुक्त किया और नया कार्बन कर लगाया। जीडीपी के आंकड़े बेहतर हैं लेकिन अन्य आंकड़े उनका समर्थन नहीं करते। ऋण में वृद्घि, विदेशी व्यापार, माल ढुलाई, कंपनियों का प्रदर्शन और औद्योगिक उत्पादन आदि ऐसे ही क्षेत्र हैं। जबकि कृषि क्षेत्र को लगातार सूखों से निपटना पड़ रहा है। अप्रत्यक्ष कर संग्रह में सुधार हुआ है लेकिन क्या केवल एक क्षेत्र में सुधार शेष की भरपाई करेगा? बुनियादी ढांचा संबंधी गतिरोधों को दूर करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं: कोयला नीलामी, बिजली वितरण कंपनी को राहत पैकेज, राजमार्ग परियोजनाओं को मंजूरी, ईंधन की कमी से लंबित बिजली परियोजनाओं को गति, दूरसंचार कंपनियों के लिए और अधिक स्पेक्ट्रम आवंटन और शहरी नवीकरण योजना। समस्या यह है कि जिन सुधारों और हलों की घोषणा की गई है वे आधे अधूरे हैं।
एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज
मुंबई, सात दिसंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि डॉलर में मजबूती के बीच अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में रुपये का उतार-चढ़ाव कम रहा है। इसके साथ ही उन्होंने देश के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति को संतोषजनक एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज बताया है।
दास ने बुधवार को यहां द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पेश करते हुए कहा कि वास्तविक आधार पर देखा जाए, तो चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर की अवधि में रुपया 3.2 प्रतिशत मजबूत हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘रुपये की एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज कहानी भारत की मजबूती और स्थिरता को दर्शाती है।’’ उन्होंने कहा कि इस साल डॉलर में मजबूती के बीच रुपये सहित दुनिया की सभी प्रमुख मुद्राओं में गिरावट आई है। इसने सभी का ध्यान खींचा है।’’
दास ने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक और घरेलू वृहद आर्थिक तथा वित्तीय बाजार के घटनाक्रमों के परिप्रेक्ष्य में रुपये के उतार-चढ़ाव का आकलन करने की जरूरत है।
पीएफ़एमएस (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली)
सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) वित्त मंत्रालय, भारत सरकार की एक पहल है जो सरकारी वित्तीय प्रबंधन प्रणालियों में परिवर्तनकारी जवाबदेही और पारदर्शिता लाने और भारत में समग्र सुशासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आधार आधारित और गैर-आधार आधारित दोनों बैंक खातों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी)/ गैर-डीबीटी भुगतान के ई-भुगतान के लिए एक वेब आधारित एप्लिकेशन प्रदान करती है।
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आजादी के 75 साल तब और अब: दुनिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी बनने की एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज ओर बढ़ रहा देश
1965 में भारत में अमेरिकी सरकार के एक अमेरिकी रिसोर्स इकोनॉमिस्ट लीस्टर ब्राउन ने अपना पूरा करियर ही तब दांव पर लगा दिया था जब उसने भारत में अनाज उत्पादन की गणना कर अनाज की किल्लत से होने वाली तबाही की आशंका जताई थी और अमेरिकी सरकार को तब तक के सबसे बड़े फूड शिपमेंट के लिए तैयार किया था. अब साल 2022 में वही भारत दुनिया भर के कई देशों को निश्चित खाद्यान्न संकट से बचा रहा है. बीते 7 दशक से ज्यादा वक्त में भारत दुनिया के सबसे गरीब मुल्क से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है. और फिलहाल देश दुनिया के टॉप 3 अर्थव्यवस्था में शामिल होने की दिशा में बढ़ रहा है. इस कामयाबी के लिए दशकों से भारतीयों की मेहनत और लगन मुख्य वजह है. जानिए बीते 75 सालों में देश की अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव हुआ है.
खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ भारत
आजादी के बाद लगातार कई साल सूखे की मार और खाद्यान्न की कमी सहने वाला भारत अब दुनिया भर के देशों को खाद्यान्न का निर्यात कर रहा है. 1960 तक भारत पूरी तरह से खाद्यान्न में आयातक की भूमिका में था. आंकड़ों पर नजर डालें तो 1950 में भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 5.49 करोड़ टन के स्तर पर था. जो कि अब यानि 2020-21 में बढ़कर 30.5 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच गया है. पिछले कई सालों से गेहूं, चीनी सहित अन्य में भारत लगातार रिकॉर्ड स्तर पर उत्पादन कर रहा है.
साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो उसकी जीडीपी सिर्फ 2.7 लाख करोड़ रुपये की थी. जो कि दुनिया की जीडीपी का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सा था. फिलहाल रियल जीडीपी 150 लाख करोड़ रुपये के करीब है. यानि जीडीपी 55 गुना बढ़ चुकी है. इसका दुनिया भर की जीडीपी में हिस्सा 2024 तक 10 प्रतिशत से ज्यादा होने का अनुमान है. बीते 75 साल में भारत की जीडीपी में लंबी अवधि के दौरान स्थिर बढ़त का रुख रहा है. सिर्फ तीन मौके ऐसे आए जब अर्थव्यवस्था की ग्रोथ शून्य से नीचे रही है. पहली बार 1965 के दौरान, दूसरी बार 1979 के दौरान और तीसरी बार 2020 में महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिली.1960 से 2021 के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1966 से पहले ग्रोथ का औसत 4 प्रतिशत से नीचे था. वहीं 2015 के बाद से औसत ग्रोथ 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है.
कैसी रही अर्थव्यवस्था की चाल
विश्व बैंक की रिपोर्ट में जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो समय के साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती साफ तौर पर दिखती है. अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव पर नजर डालें तो 1992 के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता का रुख है. 1947 से 1980 के बीच अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 9 प्रतिशत से लेकर -5 प्रतिशत के दायरे में रही. यानि इसमें काफी एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिला. 1980 से 1991 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था और संभली. इस दौरान अर्थव्यवस्था एक बार भी शून्य से नीचे नहीं पहुंची और 9 प्रतिशत से ऊपर की अपनी रिकॉर्ड ग्रोथ भी दर्ज की. वहीं अगर महामारी का दौर छोड़ दें तो 1992 से 2019 तक जीडीपी ग्रोथ 4 से 8 प्रतिशत के दायरे एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज में ही रही है. यानि समय के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता के साथ मजबूती रही है.
75 सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि देश में गरीबों की संख्या में कमी आना है. भारत जब आजाद हुआ था तो देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या बेहद गरीबी में जी रही थी. 1977 तक ये संख्या घटकर 63 प्रतिशत तक पहुंची. 1991 के सुधारों के साथ देश में पहली बार आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से ऊपर पहुंच गई. 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में 22.5 प्रतिशत लोग बेहद गरीबी में रह रहे थे. लेबर फोर्स सर्वे 2020-21 के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 के अंत तक गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या घटकर 18 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी. सर्वे के ये अनुमान वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के अनुमानों की ही दिशा में हैं. जिन्होने भी देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के अनुमान 20 प्रतिशत से नीचे दिये हैं.अगर यूएनईएससीएपी की 2017 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो सिर्फ 1990 से 2013 के बीच भारत में करीब 17 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल गए हैं. फिलहाल महामारी की वजह से गरीबों की संख्या में कुछ दबाव देखने को मिला है, हालांकि यूएन की रिपोर्ट में माना गया है कि भारत की स्थिति दूसरे अन्य विकासशील एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज देशों से बेहतर रहेगी.
कहां पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार
फिलहाल दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की मजबूती इस आधार पर तय हो रही है कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार कितना है, भारत ने इस मामले में काफी तेज ग्रोथ दर्ज की है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार फिलहाल 46 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच चुका है जो कि दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा रिजर्व है. हालांकि आजादी के बाद देश की स्थिति इस मामले में काफी कमजोरी एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज थी. 1950-51 में देश का फॉरेक्स रिजर्व सिर्फ 1029 करोड़ रुपये के स्तर पर था. 1991 तक विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति काफी नाजुक हो गई थी. इस दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब भारत के पास सिर्फ एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज 3 हफ्ते के इंपोर्ट के बराबर ही विदेशी मुद्रा भंडार था. इस संकट की वजह से ही देश में सुधारों की शुरुआत हुई और इस का फायदा ये मिला कि फिलहाल देश का विदेशी मुद्रा भंडार ऊंचे फ्यूल बिल के बावजूद 10 महीने से ज्यादा के इंपोर्ट बिल के लिए पर्याप्त है.
रुपया जितना गिरना चाहे, उतना गिर जाने दें
घाटे का सौदा
अभी एक बार फिर 1991 के विदेशी मुद्रा संकट जैसी स्थिति बन रही है। एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज आयात बढ़ रहा है और निर्यात दबाव में है। 1991 में इस समस्या को रुपये का अवमूल्यन करके निबटाया गया था। इस बार सरकार का प्रयास है कि आयात और निर्यात के फासले को विदेशी निवेश के माध्यम से पाट लिया जाए। इस बात को एक उदाहरण से समझें। मान लीजिए व्यापारी की मासिक आय 10 हजार और खर्च 12 हजार रुपये है। ऐसे में उसके पास दो उपाय हैं। एक उपाय है कि वह अपने खर्च कम करे। कार के स्थान पर स्कूटर का उपयोग करे तो खर्च कम हो जाएगा और कांटा मिल जायेगा। दूसरा उपाय है कि वह हर माह अपनी कंपनी के दो हजार रुपये के शेयर बेच दे। लेकिन कंपनी एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज के शेयर खरीदने को निवेशक कम ही तैयार होंगे क्योंकि घाटे में चलने वाली कंपनी के शेयर कम खरीदे जाते हैं।
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