भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं? जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जोकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं? 1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।
प्रवृत्ति है? परिभाषा और प्रकार
प्रवृत्ति क्या है? हम सही ढंग से समझ, जब हम शब्द कहना है, और हम समझाने के लिए है कि यह विशेष रूप से था अब कहना है? के बाद से शब्द "प्रवृत्ति" कई अर्थ है और मानव गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है दूसरा विकल्प, बहुत संभव है।
सामान्य अर्थ में प्रवृत्ति क्या है
लैटिन शब्द से "प्रवृत्ति" के रूप में अनुवाद किया है "अभिविन्यास।" इसलिए, आम तौर पर डेटा शब्द के विकास और एक घटना या विचार के विकास की दिशा का संकेत है। इसके अलावा, यह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष हो सकता है। की प्रवृत्ति - यह हमेशा एक सकारात्मक घटना नहीं है। इस तरह के एक पल सभी क्षेत्रों में इसे इस आशय की पहचान करना संभव है में प्रकट होता है।
अर्थव्यवस्था में रुझान
शेयर बाजार उद्धरण और अन्य चीजें हैं जो आम तौर पर पूरी तरह से लोगों के लिए स्पष्ट अब तक निवेश से दूर नहीं कर रहे हैं में प्रवृत्ति क्या है। फिर, सीधे शब्दों में, बाजार चाल की दिशा नहीं है। एक सशर्त ग्राफ पर एक नजर डालें।
यह पूरी तरह से प्रदर्शित किया जाता है, प्रवृत्ति - यह शीर्ष करने के लिए प्रारंभिक बिंदु से एक सीधा रास्ता नहीं है। यह वृद्धि और गिरावट। चोटियों बुलाया चोटियों और troughs कर रहे हैं - चढ़ाव।
अर्थव्यवस्था में रुझान अधिक वैश्विक। इस पर प्रमुख स्थान में बदलाव हो सकता है दुनिया के बाजार, एक उदाहरण है कि देश किसी भी वस्तुओं के उत्पादन में एक नेता बनने या प्रमुख स्थान को बरकरार रखे हुए है। अमेरिका हमेशा उत्पादन और के रखरखाव में एक नेता रहे हैं एक बाजार अर्थव्यवस्था, लेकिन हाल के वर्षों में तथ्य यह है कि इस जगह इस तरह चीन, कोरिया और दूसरों के रूप में देशों पर कब्जा करने शुरू कर रहा है की प्रवृत्ति वहाँ है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदल रहा है भूमिकाओं की प्रवृत्ति बाजार प्रणाली में देशों का पुनरभिविन्यास के कारण चिह्नित है, पूर्व प्रमुख देशों के बड़े ऋण की वजह से वित्तीय घटकों पर ध्यान केंद्रित कर,। इन सभी कारकों, तथ्य यह है कि एक देश के विकास की प्रवृत्ति ग्राफ ऊपर की ओर का प्रयास करने के लिए योगदान अन्य जबकि - नीचे की ओर।
फैशन के रुझान
यह सबसे सक्रिय क्षेत्र है। कई लोग,, फैशन के रुझान से अवगत रहने के लिए खरीदने के चमकदार पत्रिकाओं, शो में भाग लेने, स्टाइलिस्ट के साथ परामर्श। एक विशेष शैली के लिए प्रतिबद्धता मौसमी अंतरराष्ट्रीय स्टाइलिस्ट द्वारा दिया जाता है। यह सब वर्गीकरण दुकानों में क्रमश: अपने आसपास के लोगों के लिए में दिखाई देता है।
फैशन के प्रति रुझान उनकी पुनरावृत्ति अच्छे हैं। सभी शैलियों पहले से ही आविष्कार किया गया है और अब वे कुछ हद तक एक संशोधित रूप में दोहराया जाता है। आधुनिक डिजाइनरों कोर्स करने के लिए कुछ स्वाद बनाने के लिए और यह मौसम या उससे अधिक समय के लिए जनसंख्या कैप्चर करता है।
तो क्या फैशन में प्रवृत्ति करता है? यह एक विशेष बात यह है कि या कपड़े और सामान आदमी की शैली का एक मौसमी प्रसार है।
साहित्य में रुझान
जैसा कि पहले उल्लेख, प्रवृत्ति - एक प्रवृत्ति। साहित्य की दुनिया भी इस घटना के लिए अतिसंवेदनशील है। अक्सर वह किसी भी फैशन और सामाजिक प्रवृत्तियों पर निर्भर कर सकते हैं। मसलन, कई कार्यों में लोकप्रिय बॉलरूम शाम के युग में, आप गेंदों का विवरण देखने के और देखें कि वे कैसे थे कर सकते हैं। फिलहाल, इस तरह के एक प्रवृत्ति साहित्य में मनाया जाता है।
इसके अलावा, प्रवृत्तियों देश में राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। यह के दौरान और क्रांति के बाद लिखा काम करता है याद लायक है। या फिर सैन्य। वे स्पष्ट रूप से समय की एक विशेष अवधि को प्रतिबिंबित सब कर रहे हैं। मसलन, प्रवृत्ति क्रांति की एक न्यूनतम उत्पाद समर्पित करने के लिए अब है।
अब साहित्य में प्रवृत्ति क्या है? वे मौजूद हैं? बेशक, और अपनी सांस्कृतिक विरासत की पुनर्विचार साथ जुड़ा हुआ है, प्रौद्योगिकी के विकास का एक नया दौर के साथ। प्रत्येक देश और पूरी दुनिया के साहित्य बहुआयामी हैं। वहाँ नए निर्देश हैं और पुराने याद।
अर्थव्यवस्था, फैशन और साहित्य के अलावा, प्रवृत्तियों कहीं भी प्रकट कर सकते हैं। वृद्धि की प्रवृत्ति और गिरावट, शांति और युद्ध के लिए।
पहचान करने के लिए एक घटना के विकास के उन्मुखीकरण जटिल नहीं है जानें। इस विषय पर, कई लेख और पुस्तकें प्रकाशित। उन्हें को पढ़ने के बाद, आप खुद को और विशेष रूप में नामित करने में सक्षम हो जाएगा, प्रवृत्ति क्या है।
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पिछली कड़ी में हम रितिका की दुखद कहानी से रूबरू हुए थे. नवीं कक्षा में अनुतीर्ण होना, विद्यालय परिवर्तन का सदमा और अभिभावकों का ताना रूपी गोचर(विसिबल) कारणों से रितिका ने आत्महत्या जैसे विकल्प को अपनाया.
- लेकिन क्या ये गोचर कारण ही वास्तविक कारण थे?
- क्या इस घटना को रोका जा सकता था? यदि हां तो कैसे?
- आत्महत्या की प्रवृति की पहचान कैसे की जा सकती है?
आत्महत्या का जोखिम सभी लिंग, आयु और जाति के लोग में होती है. यह एक जटिल आत्मघाती व्यवहार है और इसके अनेकानेक आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं? कारण हो सकते हैं. फिर भी अध्ययन बताते हैं कि पुरुषों में और किशोरों में तुलनात्मक रूप से आत्महत्या की दर ज्यादा होती है. परामर्शी पल्लवी मिश्रा ने साझा किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 से 29 आयु वर्ग में आत्महत्या, मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है.
आत्महत्या का निवारण
किशोरों की आत्महत्या जोखिम के कारकों और चेतावनी के संकेतों को पहचान कर रोकी जा सकती है. यदि प्रयास किया जाये तो इनकी पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही संभव है. इसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अपने बच्चे को समझना. सभी बच्चे और उनका व्यवहार एक जैसा नहीं होता. अतः बच्चे को समझना भी खतरे को सीमित करता है.
किशोरों की आत्महत्या या इसकी कोशिश में उनकी मानसिक अवस्था की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. अधिकतर किशोर बेहतर परवरिश के कारण किशोरावस्था में होने वाले तनाव, विफलता, अस्वीकृति, उपेक्षा, अपमान आदि का सामना सफलतापूर्वक कर लेते हैं, लेकिन कुछ इसमें असफल भी होते हैं. उन्हें इन समस्याओं का समाधान या विकल्प नजर नहीं आता. परिस्थिति और मानसिक अवस्था के कारण अनेक किशोर यह आवेगपूर्ण राह अपना लेते हैं.
किशोरों के आत्महत्या के संभावित कारक क्या हैं?
आत्महत्या अमूमन आवेग में आकर या मानसिक अवस्था के कारण होती है. यदि बच्चे का स्वभाव मूलतः आवेगी है तो विशेष सावधानी की जरुरत होती है. एक किशोर निम्न परिस्थितियों में आत्महत्या के बारे में सोच सकता है-
- अवसाद या अन्य मानसिक विकार
- मूड डिसऑर्डर या आत्मघाती व्यवहार का पारिवारिक इतिहास
- किशोर का, परिवार के सदस्य या दोस्त द्वारा आत्महत्या का इतिहास
- करीबी दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ संघर्ष, अलगाव या धोखा
- शारीरिक या यौन शोषण, पारिवारिक हिंसा आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं?
- नशापान की लत
- लोकलज्जा का भय, सदमा
- शारीरिक या चिकित्सीय मुद्दे जैसे गर्भवती होना
- भयादोहन, आर्थिक विपत्ति आदि
किशोरों के आत्महत्या के संभावित संकेत या लक्षण
- मौत या आत्महत्या के बारे में बात करना या लिखना
- समस्या का समाधान नहीं होने की बात करना
- बड़ी ग्लानि या लज्जा की बात करना
- निराशाजनक महसूस करने या जीने का कोई कारण न होने के बारे में बात करना आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं?
- सामाजिक संपर्कों से दूरी बनाना, दूसरों पर बोझ बनने की बात करना
- जोखिम भरा या आत्म-विनाशकारी काम करना, क्रोध दिखाना या बदला लेने की बात करना
- किसी समस्या को स्थाई रूप से ख़त्म करने की बात करना, दोस्तों और परिवार को अलविदा कहना
- मिजाज में परिवर्तन, चरम मिजाज को प्रदर्शित करना, अचानक बहुत दुखी से बहुत शांत या खुश हो जाना
- खाने या सोने के पैटर्न सहित सामान्य दिनचर्या में परिवर्तन
- असहनीय दर्द (भावनात्मक दर्द या शारीरिक दर्द)
- अत्यधिक नशा का सेवन करना
- दुखी रहना, चिंतित या उत्तेजित होना
- मृत्यु संबंधी फिल्म देखना, पुस्तक या ऑनलाइन कंटेंट पढ़ना, खुद को मारने का तरीका ढूंढना
- अवांछित परिणाम मिलने पर गुमसुम हो जाना
अभिभावकों की भूमिका
अगर आपको लगता है कि आपका किशोर खतरे में है या आपको संदेह है कि वह आत्महत्या के बारे में सोच रहा है, तो उससे बात करें. उसकी भावनाओं को सुने. उसकी समस्याओं को समझने का प्रयास करें. समस्या तब विकराल हो जाती है जब व्यक्ति के मनो-मष्तिष्क में यह छाये रहती है. व्यक्ति इसके बारे में किसी से बात नहीं कर पाता, अपने समस्याओं को अपने किसी विश्वासी के साथ साझा नहीं कर पाता. अतः प्यार से अपने बच्चे को आश्वस्त करें और उसका विश्वासी बने.
असफलता, अलगाव, निराशा, समस्या, चिंता आदि जीवन का हिस्सा हैं. दिनचर्या के छोटी-छोटी घटनाओं से बच्चों को इनका सामना करना सिखाएं. किशोर उस समय टूट जाते हैं जब वे खुद को अकेला और असहाय पाते हैं. यदि उन्हें लगता है कि कोई है जो हर कदम उसके साथ है तो हौसला आसानी से नहीं टूटता. अतः अपने किशोर का हमदम बने. ज्यादा समस्या होने पर मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की सहायता लें. निवारण में निम्न कदम लाभकारी होते हैं.
- कठिन समय निकालें: कोई भी समस्या या इसकी तीव्रता स्थाई नहीं होती. समस्या के बाद के कुछ पल या दिन महत्वपूर्ण होते हैं. अतः इस दौरान विशेष सावधानी बरते.
- एकांत सीमित करें: प्रयास करे के निजता का उल्लंघन किये बिना किशोर का एकांत सीमित किया जा सके.
- निरंतर ध्यान बनायें रखें : यदि किशोर में आत्महत्या संबंधी कोई संकेत मिलता है तो इसे गंभीरता से लें.
- अवसाद या चिंता का निदान: यदि किशोर उदास, चिंतित या संघर्ष करता हुआ नजर आता है तो कारण का पता लगायें, उसकी मदद करें.
- अलगाव को हतोत्साहित करना: परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें.
- स्वस्थ जीवन शैली को प्रोत्साहित करें: योग, पौष्टिक और समयबद्ध भोजन, व्यायाम, नियमित नींद आदि के लिए मदद करें.
- सुरक्षित रखें: जहर, धारदार हथियार, नींद की गोली आदि से दूर रखें.
- दोस्तों से संपर्क: दोस्त आत्महत्या की चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं. अतः संकेत मिलने पर किशोर के दोस्तों से संपर्क बनाये रखें.
- किसी से बोन्डिंग या जीवन का उद्देश्य प्रदान करना: “हम जी कर क्या करेंगे, किसके लिए जिए” आदि मनोभाव को दूर करना, प्रेरणादायक उदाहरणों से हौसला बढ़ाएं. साथ मिल कर फिर से प्रयास के लिए प्रेरित करें. उसके सर्वाधिक प्यारे व्यक्ति पर उसके उपस्थिति का महत्व बार-बार याद दिलाएं.
किशोरों को महसूस कराएं- जीवन बहुमूल्य है और हर समस्या का समाधान है. आत्महत्या कोई समाधान नहीं बल्कि एक अस्थायी समस्या पर एक स्थायी और गलत प्रतिक्रिया है.
कैसे मनोरोगी की पहचान करें
यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Liana Georgoulis, PsyD. डॉ. लिआना जॉर्जोलिस 10 साल के अनुभव के साथ एक लाइसेंस्ड क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट हैं, जो अब लॉस एंजिल्स के Coast Psychological Services में क्लीनिकल डायरेक्टर हैं। उन्होंने 2009 में पेपरडाइन यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ़ साइकोलॉजी की डिग्री प्राप्त की। उनकी प्रैक्टिस में किशोरों, वयस्कों और कपल्स को कॉग्निटिव बेहेवियरल थेरेपी और अन्य एविडेंस बेस्ड थेरेपीज उपलब्ध होती हैं।
यहाँ पर 13 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं।
यह आर्टिकल १८,०६३ बार देखा गया है।
साइकोपैथी (Psychopathy) एक व्यक्तित्व निर्माण है जिसमें उन लक्षणों का एक समूह शामिल होता है जिसे मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल ऐसे व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो आकर्षक, मेनिपुलेटिव, भावनाहीन या क्रूर और संभावित रूप से एक अपराधी है। मीडिया के द्वारा इस शब्द का इतना इस्तेमाल किए जाने के आधार पर आप ऐसा सोच सकते हैं कि मनोरोगी लगभग हर जगह मौजूद हैं। हालाँकि, ऐसा अनुमान है कि मनोरोगी की संख्या वास्तव में पूरी आबादी का कुल 1% हैं। [१] X रिसर्च सोर्स हालांकि, मनोरोगियों की पहचान करना आसान नहीं है। अधिकांश नॉर्मल और मिलनसार प्रतीत होते हैं। आप कुछ प्रमुख व्यक्तित्व पैटर्न का मूल्यांकन करके, उस व्यक्ति की भावनाओं के प्रभाव को समझ के और उनके रिश्तों पर ध्यान देकर अपने बीच मौजूद मनोरोगियों की पहचान करना सीख सकते हैं।
Samudrik Shastra : सामुद्रिक शास्त्र में कामुक पुरुषों के बताए गये हैं कई लक्षण, देखते ही पहचान जाएंगे आप
सामुद्रिक शास्त्र में कामुक पुरुषों की पहचान के लिए कई लक्षण बताए गये हैं, जिन्हें देखकर आप आसानी से उनकी पहचान कर सकते हैं. कामुक पुरुष को उसके शरीर के आकार एवं बनावाट के माध्यम से पहचानने के लिए पढ़ें ये लेख
सनातन परंपरा में जीवन का पूर्ण आनंद लेने के लिए पुरुषार्थ चतुष्टय यानी धर्म , अर्थ , काम , और मोक्ष का कांसेप्ट है . इन तीनों में जब हम काम की बात करते हैं तो इसका जुड़ाव क्या स्त्री और क्या पुरुष और क्या पशु सभी से होता है . काम की इच्छा किसी में आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं? कम आप प्रवृत्तियों की पहचान कैसे करते हैं? तो किसी में ज्यादा पाई जाती है . सामुद्रिक शास्त्र में कामुक पुरुषों की पहचान के लिए कई लक्षण बताए गये हैं , जिन्हें देखकर आप आसानी से उनकी पहचान कर सकते हैं . सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार एक कामुक पुरुष की वासना उसके पूरे शरीर , आकार एवं बनावाट आदि से झलकती है . आइए जानते हैं कामुक पुरुषों की पहचान कराने वाले शारीरिक लक्षणों के बारे में –
- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन पुरषों के पैरों की अंगुलियों के साथ मोटा और भारी अंगूठा होता है , ऐसे पुरुष कामुक होते हैं .
- जिन पुरुषों के कान मध्यम आकार के होते हैं और कान का निचला भाग मुलायम होता है , ऐसे पुरुषों में काम वासना की अधिकता पाई जाती है .
- जिन पुरुषों का माथा चौड़ा और बीच में हल्का सा उभार लिये होता है , ऐसे पुरुष प्राय : कामुक पाये जाते हैं .
- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ऐसे पुरुष जिनके बाल भारी एवं घने होते हैं , उनमें भी काम वासना की अधिकता पाई जाती है .
- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन पुरुषों का चेहरा गोल आकार का और गाल उभार लिये होते हैं , उनमें काम की अधिकता होती है .
- मान्यता है कि जिन पुरुषों के शरीर पर घने बाल होते हैं और उनकी छाती के बाल गर्दन तक पहुंच जाते हैं , ऐसे पुरुष प्राय : कामुक प्रवृत्ति के होते हैं .
- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन पुरुषों की जांघें गोल , मजबूत एवं आपस में सटी हुई होती हैं , वे प्राय : कामुक प्रवृत्ति के होते हैं .
- कामुक एवं वासना प्रधान पुरुषों की पहचान उनके हाथों के लकीरों को देखकर भी की जा सकती है . यदि किसी पुरुष के हाथ में गोल एवं घुमावदार गहरी जीवन रेखा तथा उसके भीतर शुक्र के स्थान का उभरा एवं गुदगुदा होना उसके कामुक होने को दर्शाता है .
- जिन पुरुषों की हथेली एवं नाखून का रंग गुलाबी होता है , ऐसे पुरुष भी प्राय : कामुक पाये जाते हैं .
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(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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