Risk management rules and risk reward ratio kya hota hai

आप पैसा कमाने के लिए बिजनेस करते हैं तथा stock market में निवेश और ट्रेडिंग करते हैं इसलिए आप उसमे जो पैसा लगाते वह डूबे ना, इसके लिए आपको Risk Management सीखना चाहिए।आज की पोस्ट में, Stock market me risk management rules and risk reward retio kya hota hai ? इसके बारे में बताया जायगा।

Stock m kya hota hai arket me risk management tatha risk reward ratio

बहुत से ट्रेडर अपने अकाउंट साइज को देखे बिना ट्रेडिंग को उत्सुक रहते हैं तथा एक ट्रेड में ही बहुत ज्यादा पैसा कमाने की कामना करते हैं। इस प्रकार के ट्रेड को ट्रेडिंग नहीं Gambling कहते हैं।
यदि आप risk management Market रिस्क क्या होता है rules के बिना ट्रेड करते हैं तो आप Gambling करते हैं। आप long-term return नहीं देखते अपने निवेश पर आप jackpot के चक्कर में रहते हैं। मनी मैनेजमेंट रूल्स केवल आपके मनी को प्रोटेक्ट ही नहीं करते बल्कि आपको लॉन्ग टर्म में काफी प्रॉफिट भी देते हैं। आपको बहुत ही अच्छा statistician होना चाहिए gambler नहीं तभी आप लम्बे समय में विनर बन सकते हैं तथा आपको मनी मैनेजमेंट रूल्स का सख्ती से पालन करना चाहिए।

पूंजीकरण (Capitalization) :

ये तो आप सभी जानते हैं कि पैसे से पैसा बनता है लेकिन ट्रेडिंग स्टार्ट करने से पहले आपका stock market के व्यवहार के बारे मे सीखना जरूरी है तथा आपको Risk management rules का सख्ती से पालन करना चाहिए जैसे -आपके ट्रेडिंग अकाउंट में 20,000रूपये हैं तथा आप एक ट्रेड में 2 % का रिस्क लेते हैं तो एक ट्रेड में लॉस होने पर आपके अकाउंट से चार सौ रूपये कम होगे तथा 10 % का रिस्क लेने पर 2000 रूपये कम होंगे। इस प्रकार आप 2 % और 10 % का रिस्क का अंतर समझ सकते हैं।
ब्रोकर रिटेल ट्रेडर को फंड भी उपलब्ध करवाते हैं जिसे मार्जिन मनी (margin money ) कहते हैं लेकिन आपको उससे जल्दबाजी में ट्रेडिंग स्टार्ट नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसमें रिस्क बहुत ज्यादा होता है इसमें आपको अपनी पोजीशन ना चाहते हुए भी कटनी पड़ सकती है। यदि आपके पास फिलहाल money नहीं है तो आपको मनी save करके, उसके बाद ही ट्रेडिंग शुरू करनी चाहिए। What is Stock Broker and Brokrage fee-in Hindi

Draw down:

यदि आप लगातार अठारह -उन्नीस ट्रेड में मनी lose करेंगे तो आप अपने अकाउंट का 85 % तक मनी का नुकसान कर लगे। इसे ही draw down कहते हैं। इससे बचने के लिए risk management rules का सख्ती से पालन करना चाहिए।
नुकसान से बचने के लिए आपका एक trading system होना चाहिए तथा यह कम से कम 70 % प्रोफिटेबल होना चाहिए यानि कि आपके दस में से सात ट्रेड प्रोफिटेबल होने चाहिए। आपका एक ट्रेडिंग प्लान होना चाहिए जिसे आपको रिस्क मेनेजमैंट रूल्स के साथ काम में लेना चाहिए। Draw down ट्रेडिंग का एक पार्ट है लेकिन आपको अपने पैसे के बहुत कम प्रतिशत का ही रिस्क लेना चाहिए, आखिर आप यहाँ पैसे कमाने आये हैं, गवांने नहीं। यदि आप Risk management rules का पालन करेंगे तो आप हमेशा विनर रहेंगे।

Risk Reward Ratio:

रिस्क रिवार्ड रेश्यो वह पैरामीटर है जो ट्रेडर ट्रेड करते समय रिवर्ड के अनुपात में रिस्क भी उठता है। जैसे -कि यदि आप दो सौ रूपये का रिस्क उठाते हैं और चार सौ रूपये कमाना चाहते हैं तो इसे 1:2 का रिवार्ड रेश्यो कहते हैं। इसी प्रकार यदि आप पाँच सौ रूपये का रिस्क उठाते हैं तथा पन्द्रह सौ रूपये का रिवार्ड चाहते हैं तो इसे 1:3 का रिवार्ड रेश्यो कहते हैं।
मान लीजिये आप दस ट्रेड करते हैं तथा पाँच ट्रेड में प्रत्येक में एक हजार Market रिस्क क्या होता है रूपये का नुकसान करते हैं तथा पाँच ट्रेड में प्रत्येक में तीन हजार रूपये का प्रॉफिट करते हैं प्रकार आप 50 % विनर रहते हैं तथा कुल मिलाकर पाँच ट्रेड में पांच हजार रूपये का नुकसान तथा 1500 हजार रूपये का प्रॉफिट कमाते हैं। इस प्रकार पॉँच हजार के लॉस को निकलकर भी आप दस हजार रूपये का प्रॉफिट कमाते हैं। इसमें 1:3 का रिस्क रिवार्ड रेश्यो है।
ट्रेडिंग के दौरान ट्रेडर को रिस्क कम और रिवार्ड ज्यादा का रेश्यो रखना चहिये तथा1:3 का रिवार्ड रेश्यो अच्छा रहता है, ज्यादा रिस्की ट्रेड को अवॉयड करना चाहिए। बहुत से अनुभवी ट्रेडर तभी ट्रेड करते हैं जब रिवार्ड रेश्यो 1:5 या इससे अधिक हो। हाई अच्छे रिस्क रिवार्ड रेश्यो के लिए ट्रेडर को इंतजार करना चाहिए तथ जब risk reward ratio अपने अनुकूल हो तभी ट्रेड करना चाहिए। इसी को risk management rules को फॉलो करना कहते हैं
यह सही है कि पैसे से पैसा बनता है, लेकिन आपको ट्रेडिंग स्टार्ट करने से पहले उस पर अच्छी तरह पकड़ बना लेनी चाहिए यानि कि अच्छी तरह सीख कर शुरुआत करनी चाहिए। आपको वो सभी कोशिश करनी चाहिए जिनसे आप अपने अकाउंट को प्रोटेक्ट कर सकते हैं। आपको अपने अकाउंट के स्मॉल पर्सेंटेज का ही रिस्क उठाना चाहिए जिससे आप लम्बे समय तक सर्वाइव कर सकें।
आशा है कि अब आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि Risk management rules and reward ratio kya hota hai . उम्मीद है आज की प्रेरणादायी पोस्ट आपको जरूर पसंद आयी होगी, ऐसी ही प्रेरणादायी पोस्ट पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर कीजिये।

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क्या ज्यादा रिस्क लेने से ज्यादा रिटर्न मिलता है? निवेश से पहले इस कहावत की सच्चाई को समझें

कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक से आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है.

बात जब फाइनेंसिंग (Personal financing) की हो तो एकबात बार-बार दोहराई जाती है को हाई रिस्क का मतलब ज्यादा रिटर्न (High risk, more return) होता है. ये बात फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स भी कहते हैं. क्या इस कहावत में दम है, उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. बात अगर इक्विटी में निवेश की करें तो जहां वोलाटिलिटी (Volatility in stocks) ज्यादा होगी, रिटर्न ज्यादा मिलने की संभावना होती है.

बात जब फाइनेंसिंग (Personal financing) की हो तो एकबात बार-बार दोहराई जाती है को हाई रिस्क का मतलब ज्यादा रिटर्न (High risk, more return) होता है. ये बात फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स भी कहते हैं. क्या इस कहावत में दम है, उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. बात अगर इक्विटी में निवेश की करें तो जहां वोलाटिलिटी (Volatility in stocks) ज्यादा होगी, रिटर्न ज्यादा मिलने की संभावना होती है.

बात अगर असेट क्लास की करें तो इसमें गोल्ड, डेट और इक्विटी तीनों आते हैं. इक्विटी असेट डेट के मुकाबले ज्यादा वोलाटाइल होता है. इतिहास पर गौर करें तो लॉन्ग टर्म में इक्विटी ने जितना रिटर्न दिया है उसके मुकाबले डेट सिक्यॉरिटीज ने बहुत कम रिटर्न दिया है. हालांकि, कई स्टडीज में यह दावा किया गया है कि जिन स्टॉक्स में वोलाटिलिटी कम होती है, वहां बेहतर रिटर्न मिलते हैं. लॉन्ग टर्म में कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स ज्यादा वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स के मुकाबले बेहतर रिटर्न देते हैं.

बात अगर असेट क्लास की करें तो इसमें गोल्ड, डेट और इक्विटी तीनों आते हैं. इक्विटी असेट डेट के मुकाबले ज्यादा वोलाटाइल होता है. इतिहास पर गौर करें तो लॉन्ग टर्म में इक्विटी Market रिस्क क्या होता है ने जितना रिटर्न दिया है उसके मुकाबले डेट सिक्यॉरिटीज ने बहुत कम रिटर्न दिया है. हालांकि, कई स्टडीज में यह दावा किया गया है कि जिन स्टॉक्स Market रिस्क क्या होता है में वोलाटिलिटी कम होती है, वहां बेहतर रिटर्न मिलते हैं. लॉन्ग टर्म में कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स ज्यादा वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स के मुकाबले बेहतर रिटर्न देते हैं.

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स की सलाह होती है कि अगर आप कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेश करते हैं तो लॉन्ग टर्म में इसके दो फायदे हैं. पहला फायदा ये है कि आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है. लॉन्ग टर्म तक होल्ड करने पर आपको रिटर्न भी शानदार मिलता है.

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स की सलाह होती है कि अगर आप कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेश करते हैं तो लॉन्ग टर्म में इसके दो फायदे हैं. पहला फायदा ये है कि आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है. लॉन्ग टर्म तक होल्ड करने पर आपको रिटर्न भी शानदार मिलता है.

अगर स्टॉक कम वोलाटाइल है तो बियर मार्केट में नुकसान काफी कम होता है और रिकवरी भी तेज होती है. उदाहरण के तौर पर अगर आपका इक्विटी पोर्टफोलियो शेयर बाजार क्रैश होने पर 10 फीसदी फिसलता है तो रिकवरी के लिए उसे 11 फीसदी चढ़ना होगा. ज्यादा वोलाटलिटी वाले स्टॉक में 50 फीसदी तक गिरावट आएगी जिसके कारण उसमें 100 फीसदी का करेक्शन जरूरी होगा. इसके बाद यह अपने पुराने स्टॉक प्राइस पर पहुंचेगा.

अगर स्टॉक कम वोलाटाइल है तो बियर मार्केट में नुकसान काफी कम होता है और रिकवरी भी तेज होती है. उदाहरण के तौर पर अगर आपका इक्विटी पोर्टफोलियो शेयर बाजार क्रैश होने पर 10 फीसदी फिसलता है तो रिकवरी के लिए उसे 11 फीसदी चढ़ना होगा. ज्यादा वोलाटलिटी वाले स्टॉक में 50 फीसदी तक गिरावट आएगी Market रिस्क क्या होता है जिसके कारण उसमें 100 फीसदी का करेक्शन जरूरी होगा. इसके बाद यह अपने पुराने स्टॉक प्राइस पर पहुंचेगा.

शेयर बाजार के निवेशकों को ज्यादा रिटर्न की चाह होती है. ऐसे में हाई वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेशकों की बाढ़ आ जाती है और इसके कारण स्टॉक का प्राइस काफी बढ़ जाता है. कम समय में यह ओवर वैल्युड हो जाता है जिसके कारण करेक्शन बहुत तेज होता है. वहीं, लो वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में कम निवेशक आते हैं जिसके कारण यह लिमिटेड प्राइस रेंज में रहता है.

शेयर बाजार के निवेशकों को ज्यादा रिटर्न की चाह होती है. ऐसे में हाई वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेशकों की बाढ़ आ जाती है और इसके कारण स्टॉक का प्राइस काफी बढ़ जाता है. कम समय में यह ओवर वैल्युड हो जाता है जिसके कारण करेक्शन बहुत तेज होता है. वहीं, लो वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में कम निवेशक आते हैं जिसके कारण Market रिस्क क्या होता है यह लिमिटेड प्राइस रेंज में रहता है.

क्या ज्यादा रिस्क लेने से ज्यादा रिटर्न मिलता है? निवेश से पहले इस कहावत की सच्चाई को समझें

कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक से आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है.

बात जब फाइनेंसिंग (Personal financing) की हो तो एकबात बार-बार दोहराई जाती है को हाई रिस्क का मतलब ज्यादा रिटर्न (High risk, more return) होता है. ये बात फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स भी कहते हैं. क्या इस कहावत में दम है, उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. बात अगर इक्विटी में निवेश की करें तो जहां वोलाटिलिटी (Volatility in stocks) ज्यादा होगी, रिटर्न ज्यादा मिलने की संभावना होती है.

बात जब फाइनेंसिंग (Personal financing) की हो तो एकबात बार-बार दोहराई जाती है को हाई रिस्क का मतलब ज्यादा रिटर्न (High risk, more return) होता है. ये बात फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स भी कहते हैं. क्या इस कहावत में दम है, उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं. बात अगर इक्विटी में निवेश की करें तो जहां वोलाटिलिटी (Volatility in stocks) ज्यादा होगी, रिटर्न ज्यादा मिलने की संभावना होती है.

बात अगर असेट क्लास की करें तो इसमें गोल्ड, डेट और इक्विटी तीनों आते हैं. इक्विटी असेट डेट के मुकाबले ज्यादा वोलाटाइल होता है. इतिहास पर गौर करें तो लॉन्ग टर्म में इक्विटी ने जितना रिटर्न दिया है उसके मुकाबले डेट सिक्यॉरिटीज ने बहुत कम रिटर्न दिया है. हालांकि, कई स्टडीज में यह दावा किया गया है कि जिन स्टॉक्स में वोलाटिलिटी कम होती है, वहां बेहतर रिटर्न मिलते हैं. लॉन्ग टर्म में कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स ज्यादा वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स के मुकाबले बेहतर रिटर्न देते हैं.

बात अगर असेट क्लास की करें तो इसमें गोल्ड, डेट और इक्विटी तीनों आते हैं. इक्विटी असेट डेट के मुकाबले ज्यादा वोलाटाइल होता है. इतिहास पर गौर करें तो लॉन्ग टर्म में इक्विटी ने जितना रिटर्न दिया है उसके मुकाबले डेट सिक्यॉरिटीज ने बहुत कम रिटर्न दिया है. हालांकि, कई स्टडीज में यह दावा किया गया है कि जिन स्टॉक्स में वोलाटिलिटी कम होती है, वहां बेहतर रिटर्न मिलते हैं. लॉन्ग टर्म में कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स ज्यादा वोलाटिलिटी वाले स्टॉक्स के मुकाबले बेहतर रिटर्न देते हैं.

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स की सलाह होती है कि अगर आप कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेश करते हैं तो लॉन्ग टर्म में इसके दो फायदे हैं. पहला फायदा ये है कि आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है. लॉन्ग टर्म तक होल्ड करने पर आपको रिटर्न भी शानदार मिलता है.

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स की सलाह होती है कि अगर आप कम वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेश करते हैं तो लॉन्ग टर्म में इसके दो फायदे हैं. पहला फायदा ये है कि आपके पोर्टफोलियो का रिस्क काफी कम हो जाता है. लॉन्ग टर्म तक होल्ड करने पर आपको रिटर्न भी शानदार मिलता है.

अगर स्टॉक कम वोलाटाइल है तो बियर मार्केट में नुकसान काफी कम होता है और रिकवरी भी तेज होती है. उदाहरण के तौर पर अगर आपका इक्विटी पोर्टफोलियो शेयर बाजार क्रैश होने पर 10 फीसदी फिसलता है तो रिकवरी के लिए उसे 11 फीसदी चढ़ना होगा. ज्यादा वोलाटलिटी वाले स्टॉक में 50 फीसदी तक गिरावट आएगी जिसके कारण उसमें 100 फीसदी का करेक्शन जरूरी होगा. इसके बाद यह अपने पुराने स्टॉक प्राइस पर पहुंचेगा.

अगर स्टॉक कम वोलाटाइल है तो बियर मार्केट में नुकसान काफी कम होता है और रिकवरी भी तेज होती है. उदाहरण के तौर पर अगर आपका इक्विटी पोर्टफोलियो शेयर बाजार क्रैश होने पर 10 फीसदी फिसलता है तो रिकवरी के लिए उसे 11 फीसदी चढ़ना होगा. ज्यादा वोलाटलिटी वाले स्टॉक में 50 फीसदी तक गिरावट आएगी जिसके कारण उसमें 100 फीसदी का करेक्शन जरूरी होगा. इसके बाद यह अपने पुराने स्टॉक प्राइस पर पहुंचेगा.

शेयर बाजार के निवेशकों को ज्यादा रिटर्न की चाह होती है. ऐसे में हाई वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेशकों की बाढ़ आ जाती है और इसके कारण स्टॉक का प्राइस काफी बढ़ जाता है. कम समय में यह ओवर वैल्युड हो जाता है जिसके कारण करेक्शन बहुत तेज होता है. वहीं, लो वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में कम निवेशक आते हैं जिसके कारण यह लिमिटेड प्राइस रेंज में रहता है.

शेयर बाजार के निवेशकों को ज्यादा रिटर्न की चाह होती है. ऐसे में हाई वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में निवेशकों की बाढ़ आ जाती है और इसके कारण स्टॉक का प्राइस काफी बढ़ जाता है. कम समय में यह ओवर वैल्युड हो जाता है जिसके कारण करेक्शन बहुत तेज होता है. वहीं, लो वोलाटिलिटी वाले स्टॉक में कम निवेशक आते हैं जिसके कारण यह लिमिटेड प्राइस रेंज में रहता है.

शेयर बाजार में निवेश करने के लिए क्या करना होता है? 8 बुनियादी Market रिस्क क्या होता है सवालों के जवाब

Share Market Guide: शेयर खरीदने के लिए क्या करना होगा, किस कंपनी का शेयर खरीदे?

शेयर बाजार में निवेश करने के लिए क्या करना होता है? 8 बुनियादी सवालों के जवाब

महंगाई (Inflation) बढ़ रही है और रुपये (Rupee) का मूल्य घट रहा है. यानी सिर्फ पैसा बचाने से काम नहीं चलेगा, पैसा बढ़ाना भी पड़ेगा. ऐसे में शेयर बाजार (Share Market) में निवेश अच्छा विकल्प हो सकता है. लेकिन शेयर मार्केट (Stock Market) में पहली बार निवेश करने वालों के लिए क्या जानना जरूरी है? शेयर बाजार में निवेश करने के लिए क्या करना होता है?

कब कर सकते हैं? किस शेयर में पैसा लगाएं? ये सारी बातें यहां हम आपको बता रहे हैं.

शेयर बाजार में निवेश करने के लिए क्या करना होता है? 8 बुनियादी सवालों के जवाब

1. शेयर क्या है?

किसी कंपनी को चलाने के लिए पूंजी यानी कैपिटल की जरूरत पड़ती है. अब कंपनी को चलाने के लिए मालिक बाजार से पैसा उठाना चाहता है तो वह कैपिटल को हिस्सों में बांट देता है यही हिस्से कहलाते हैं शेयर. जैसे किसी कंपनी की कैपिटल 100 रुपये है. अब कंपनी इसे 100 हिस्सों में बांट दें तो वे 100 हिस्से शेयर्स कहलाएंगे और एक शेयर एक रुपये का होगा. अब इसी कैपिटल को दो या 5 हिस्सों में भी बांटा जा सकता है. यानी कंपनी की एक यूनिट एक शेयर के बराबर होती है.

अब आप किसी कंपनी का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उसके शेयर खरीद सकते हैं. इन्हीं शेयर्स की जब आप खरीदी बिक्री करने जिस बाजार में जाएंगे उसे कहते हैं शेयर बाजार.

2. शेयर खरीदने के लिए क्या करना होगा?

शेयर बाजार में पांव रखने से पहले आपको चाहिए डिमैट अकाउंट. जैसे बैंक में बचत, एफडी में निवेश के लिए बैंक अकाउंट चाहिए वैसे ही शेयर मार्केट में निवेश के लिए डिमैट अकाउंट होना जरूरी है. डीमैट के जरिए ही शेयर्स को खरीदा-बेचा जाता है, होल्ड किया जाता है. यह एक तरह से शेयर्स का डिजिटल अकाउंट है.

3. डीमैट अकाउंट क्या है

डीमैट अकाउंट मतलब- डीमटेरियलाइज्ड यानी किसी भी फिजिकल चीज का डिजिटलाइज होना. डिमैट अकाउंट आप चंद सैकेंड में खोल सकते हैं. आधार कार्ड, पैन कार्ड जैसी केवाईसी डॉक्यूमेंट लगती हैं. इसके लिए ब्रोकर की जरूरत होती है. अब ब्रोकर कोई व्यक्ति भी हो सकता है और कंपनी भी. ब्रोकर की वेबसाइट या एप पर जाकर डिमैट अकाउंट आसानी से खोला जा सकता है. अगर आप नेटबैंकिंग करते हैं तो आपके बैंक की वेबसाइट या एप पर भी डिमैट अकाउंट खोल सकते हैं. आमतौर पर इसकी Market रिस्क क्या होता है लिए कोई फीस नहीं देनी होती लेकिन यह कंपनी पर निर्भर करता है कि वे डिमैट के लिए कितना वसूलना चाहते हैं.

4. किस कंपनी का शेयर खरीदें?

जवाब है किसी अच्छी कंपनी है, क्योंकि अच्छी कंपनी के शेयर्स अच्छा रिटर्न देते हैं. अच्छी कंपनी मतलब जिसका प्रॉफिट, प्रोडक्ट, भविष्य अच्छा हो. शेयर मार्केट की भाषा में इसे कंपनी के फंडामेंटल्स यानी बुनियादी बातें कहते हैं, कंपनी के फंडामेंटल्स अच्छे हैं तो कंपनी का भविष्य अच्छा माना जाता है. इसके लिए आपको कंपनी की सालाना बैलेंस शीट पर नजर रखनी होती है. यानी कंपनी कितना कमा रही है, कितना कर्ज है, कितना मुनाफा हो रहा है? कंपनी के शेयर्स ने पहले कैसा प्रदर्शन किया है. ये सब देखना होता है. कई बार खबरें भी कंपनी के शेयर्स को प्रभावित करती हैं. जैसे कि जब Market रिस्क क्या होता है Market रिस्क क्या होता है दुनिया के सबसे अमीर आदमी ईलॉन मस्क ने ट्विटर को खरीदने का ऐलान किया तो निवेशकों में ट्विटर के शेयर्स को खरीदने की होड़ लग गई. लेकिन निवेशक केवल कंपनी के फंडामेंटल्स पर ध्यान दें तो भी काम बन सकता है. सबसे पहले ऐसे शेयर में निवेश करें जो सुरक्षित हैं. यानी उन बड़ी कंपनियों के शेयर्स खरीदें जो दशकों पुरानी हैं, प्रॉफिट में रहती है और आगे भी रहेंगी. इससे आप नुकसान में नहीं रहेंगे. जब इसमें निवेश कर लें तो शेयर्स को स्टडी करना सीखें, कंपनी की बैलेंस शीट पढ़ना सीखें.

5. प्राइमरी मार्केट और सेकेंडरी मार्केट क्या है?

जब आप कोई शेयर सीधे कंपनी से खरीदते हैं जैसे की आईपीओ के जरिए.. यह प्राइमरी मार्केट है. यानी कंपनियां जो शेयर्स बाजार में इश्यू करती है. लेकिन जब सीधे कंपनी से खरीदे हुए शेयर्स को आप अन्य खरीदारों में बेचने जाते हैं तो वो सेकेंड्री मार्केट है. यानी इश्यू किए हुए शेयर्स की जब खरीद बिक्री होती है.

6. ट्रेडिंग या निवेश?

एक्सपर्ट कहते हैं कि 5 साल, 10 साल या उससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करने वाले फायदे में रहते हैं. यानी लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट. अब शेयर बाजार को गहनता से समझने वाले और रिस्क उठा सकने वाले ही शॉर्ट टर्म या हर रोज शेयर बाजार में निवेश Market रिस्क क्या होता है कर सकते हैं. कितना और कितने समय के लिए निवेश? अब सबसे पहले आप ये तय करें कि निवेश कितना करना है और कितने समय के लिए. फिर तय करें कि आप निवेश करना क्यों चाहते हैं यानी कि आपका उद्देश्य क्या है. जैसे, शिक्षा, शादी या घर खरीदने जैसे गोल्स. इसी अनुसार आप आगे बढ़ते हैं और तभी आप फैसला ले पाएंगे कि आपको किस शेयर में निवेश करना है. शेयर मार्केट में शुरुआत धीमी रखें.

7. शेयर बाजार नहीं समझते हैं तो कैसे निवेश करें?

अगर आपके पास इन सब के लिए समय नहीं है या समझ नहीं है तो ऐसी स्थिति में आप किसी फाइनेंशियल एक्सपर्ट से ही सलाह लें, एक्सपर्ट को बताएं कि आप कितना खर्च करना चाहते हैं और कितने समय के लिए. आपका निवेश का उद्दश्य क्या है और आप निवेश से कितने रिटर्न की अपेक्षा रखते हैं. एक उपाय म्यूचुअल फंड भी हैं. जिसमें कुछ एक्सपर्ट आपके जैसे कई निवशकों के पैसे को कहां लगाना है ये तय करते हैं.

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