कार्यक्रम: वार्षिक आम सभा का आयोजन कर पारदर्शिता के साथ वित्तीय वर्ष 2022 का दिया लेखा-जोखा
घोघरडीहा प्रखंड स्वराज विकास संघ का 45 वां वार्षिक आम सभा मंगलवार को मुख्य कार्यालय जगतपुर में आयोजित किया गया। जिसमें संस्था की पारदर्शिता दिखाते हुए पिछले एक वर्ष 2022 का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया। वहीं वर्ष 2023 के लिए बनाई गई कार्य योजना में जलवायु परिवर्तन संदर्भित आपदाओं से सुरक्षा हेतु उत्तर बिहार में महिला नेतृत्व आधारित महिला पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम वार्ड तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण वाली तकनीक से शुद्ध पेयजल उपलब्धता, कोविड-19 से उत्पन्न सामाजिक जोखिम प्रबंधन एवं आर्थिक प्रभाव के संदर्भ में भारत में स्वैच्छिक संगठनों का क्षमता वृद्धि कार्यक्रम आदि पर हुए का लेखा प्रस्तुत कर लोगों को जानकारी दी गई। साथ ही 2023 में स्वास्थ्य, शिक्षा जोखिम प्रबंधन एवं समावेशी जल एवं स्वच्छता, कृषि पशुपालन, नेत्र स्वास्थ्य विजन सेंटर, प्राकृतिक स्रोत व्यवस्थापन, समुदाय आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु कार्यक्रम समेकित जल प्रबंधन एवं जन शिक्षा एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम, महिला सशक्तिकरण लैंगिक समानता साथ ही सीएससी सहित कार्यशाला प्रशिक्षण सेमिनार, जन जागरूकता, कस्तूरबा महिला मंडल क्लस्टर सहभागिता आधारित भूषण जल प्रबंधन कार्यक्रम को लेकर होने वाले खर्च की भी जानकारी सदस्यों व उपस्थित लोगों को दी गई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वर्ल्ड नेबर्स के प्रतिनिधि सृजना कार्की ने कहा कि जीपीएसभीएस हमेशा पारदर्शिता के साथ कार्यक्रम को संचालित करती आई है, आगे भी यह संस्था कार्यक्रम पूरे ऊर्जा के साथ करेगी।
बंजर जमीन पर खेती कर इस किसान ने किया कमाल, 7500 रुपये लगाकर कमा लिया ₹2.5 लाख
Natural Farming: प्राकृतिक खेती किसानों के लिए वरदान है. इससे कम लागत में बेहतर मुनाफा मिलता है. प्राकृतिक खेती विधि में किसानों को मिश्रित फसलें लगानी होती है जिससे उन्हें थोड़े-थोड़े समय में आय होती रहती है.
प्राकृतिक खेती के ये हैं फायदे. (File Photo)
Natural Farming: रियाटर प्रोफेसर अशोक गोस्वामी ने 20 बीघा बंजर जमीन को कई वर्षों की मेहनत के बाद 20 तरह के फलों वाले बगीचे में बदलकर हरा भरा कर दिया है. वो इस जमीन में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) विधि से फलों के साथ कई तरह की सब्जियों और अनाज फसलों का उत्पादन ले रहे हैं. अशोक रिटायरमेंट के बाद अब पूरा समय फार्म में बिताते हैं और प्राकृतिक खेती को पूरी तरह अपनाने के लिए उन्होंने देसी गाय की खरीद ली. प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध बैजनाथ को फर्म टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में ख्याति दिलाने के लिए उन्होंने नयी पहल की.
प्राकृतिक खेती विधि से फॉर्म टूरिज्म का मॉडल खड़ा करने वाले प्रो. अशोक को इससे बहुत अच्छा परिणाम मिला. हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, उनके फार्म में 20 तरह के फलदार पौधे लगे हैं और सभी में फल आना शुरू हो गए हैं. उनके मुताबिक, उनके पास दूर-दूर से लोग आते हैं और वे मेरे इस प्रयास को बहुत सराह रहे हैं. इसलिए अब मैंने अपने फार्म को 'नेचुरल एग्रोटूरिज्म' नाम दिया.
क्या है प्राकृतिक खेती?
प्राकृतिक खेती एक केमिकल फ्री एग्री सिस्टम है जो इको-सिस्टम, संसाधन रीसाइक्लिंग और ऑन-फार्म संसाधन अनुकूलन की आधुनिक समझ से समृद्ध है. इसे एग्री इकोसिस्टम आधारित विविध कृषि प्रणाली के रूप में माना जाता है जो कार्यात्मक जैव विविधता के साथ फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है.
प्राकृतिक खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करना, विविधता को बनाए रखना, पशु कल्याण सुनिश्चित करना, प्राकृतिक,स्थानीय संसाधनों के कुशल उपयोग पर जोर देता है. मिट्टी की जैविक गतिविधि को प्रोत्साहित करती है और खाद्य उत्पादन प्रणाली के साथ-साथ पौधों और जानवरों दोनों के जीवित जीवों की जटिलता का प्रबंधन करती है.
प्राकृतिक खेती का उद्देश्य लागत में कमी, कम जोखिम, समान पैदावार, अंतर-फसल से होने वाली आय के कारण किसानों की आय में वृद्धि करके खेती को महत्वाकांक्षी बनाना है.
कम खर्च में ज्यादा मुनाफा
प्रो. अशोक प्राकृतिक खेती से कम खर्च में मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने 20 बीघा में फलों के साथ मटर, धनिया, अदरक, लहसुन, प्याज और खीरा की खेती की. इस पर उन्हें 7500 रुपये का खर्च आया, जबकि मुनाफा 250000 रुपये हुआ. उनका कहना है कि जोखिम प्रबंधन किसानों को परंपरागत अनाज फसलों से हटकर फलों और सब्जियों की खेती की ओर रूख करना चाहिए ताकि उनकी आर्थिक और बेहतर हो सके.
प्राकृतिक खेती विधि में किसानों को मिश्रित फसलें लगानी होती है जिससे उन्हें थोड़े-थोड़े समय में आय होती रहती है. मेरा मानना है कि सभी किसानों को इस खेती विधि को प्रयोग के तौर पर शुरू करके इसका दायरा बढ़ाना चाहिए.
एमबीए vs एमकॉम (MBA vs MCom): करिकुलम, विशेषज्ञता, कैरियर स्कोप और जॉब अपॉर्च्युनिटी
कौन सा बेहतर है कोर्स: MBA या MCom? कैसे तय करें कि ग्रेजुएशन के बाद किसे चुनें? यहां जोखिम प्रबंधन एमबीए vs एमकॉम (MBA vs MCom) विश्लेषण है जो आपको यह तय करने में मदद करेगा कि आपके लिए सबसे अच्छा चयन कौन सा है!
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एमबीए vs एमकॉम (MBA vs MCom) चुनने का निर्णय स्नातकों के लिए काफी कठिन है, खासकर उन लोगों के लिए जो अभी भी अपने विकल्प तलाश रहे हैं। वे अक्सर इस बारे में भ्रमित महसूस करते हैं कि क्या उन्हें ग्रेजुएशन के बाद MBA या MCom करना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय पोस्टग्रेजुएट डिग्री विकल्प हैं। यह पता लगाने के लिए कि कौन सा कोर्स सबसे अच्छा है, एक छात्र जोखिम प्रबंधन जोखिम प्रबंधन को प्रत्येक कोर्स की मुख्य विशेषताओं पर ध्यान देना चाहिए।
MBA (Master of Business Administration) और MCom (Master of Commerce) दोनों कॉमर्स छात्र के लिए स्नातकोत्तर कोर्सेस के लिए अच्छे विकल्प हैं। हालाँकि, ये दोनों कोर्सेस अपने मुख्य फोकस क्षेत्रों सहित कई पहलुओं में बहुत भिन्न हैं।
एमबीए एक पेशेवर कोर्स है जो उद्योग की आवश्यकताओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है और छात्रों को बेहतर प्रबंधन नौकरियां प्राप्त करने में मदद करता है। दूसरी ओर, एमकॉम कॉमर्स के क्षेत्र में सैद्धांतिक ज्ञान को लक्षित करने वाला कोर्स है। जबकि एमबीए व्यवसाय प्रशासन और प्रबंधन में कैरियर जोखिम प्रबंधन के लिए एक उम्मीदवार तैयार करता है, एमकॉम वित्त में शैक्षणिक गतिविधियों के लिए एक उत्कृष्ट जोखिम प्रबंधन कोर्स और कॉमर्स है।
यदि यह तय करना आपके लिए बहुत भारी हो रहा है कि MBA या MCom के लिए जाना है, तो भारत में Mcom vs MBA कोर्सेस की तुलना पर एक नज़र डालें। हम एक नज़र डालते हैं कि दोनों कोर्सेस की तुलना कैसे की जाती है। पात्रता, सिलेबस , लागत, और रिटर्न, और यह पता लगाने में आपकी सहायता करें कि आपके लिए सबसे अच्छा कोर्स कौन सा है!
उत्तराखंड: विशेषज्ञों की टीम ने ‘धंस रहे’ जोशीमठ का निरीक्षण किया
जोशीमठ के धीरे-धीरे ‘धंसने’ को लेकर निवासियों के विरोध के कुछ दिनों बाद, विशेषज्ञों की एक टीम ने मंगलवार को उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित इस शहर का मौके पर निरीक्षण किया।
जोशीमठ के धीरे-धीरे ‘धंसने’ को लेकर निवासियों के विरोध के कुछ दिनों बाद, विशेषज्ञों जोखिम प्रबंधन की एक टीम ने मंगलवार को उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित इस शहर का मौके पर निरीक्षण किया। बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले जोशीमठ के कई घरों, दुकानों और होटलों में दरारें आने की खबरों के बाद यह कदम उठाया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि विशेषज्ञों की पांच सदस्यीय टीम ने उन भवनों का निरीक्षण किया जिनमें दरारें आई हैं। टीम ने प्रभावित लोगों से बातचीत की और जिला प्रशासन को अपनी प्रतिक्रिया दी। इस टीम में वरिष्ठ अधिकारी, भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ और इंजीनियर शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने टीम जोशीमठ भेजी और अधिकारियों को इंजीनियर से परामर्श लेने के बाद तुरंत सुरक्षात्मक कार्य शुरू करने का निर्देश दिया।
जिला सूचना अधिकारी रवींद्र नेगी ने कहा कि खुराना ने जोशीमठ के लिए जल निकासी योजना तैयार करने को भी कहा है।
जिलाधिकारी ने अधिकारियों को जोशीमठ की तलहटी में मारवाड़ी पुल और विष्णुप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी से होने वाले कटाव पर काबू पाने के लिए सुरक्षा दीवार के निर्माण की खातिर ‘‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना’’ के तहत प्रस्ताव तैयार करने को भी कहा।
विशेषज्ञों की इस टीम में नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार, अनुमंडलाधिकारी (एसडीएम) कुमकुम जोशी, भूवैज्ञानिक दीपक हटवाल, कार्यपालक अभियंता (सिंचाई) अनूप कुमार डिमरी और जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एन. के. जोशी शामिल थे।
जोशीमठ के धीरे-धीरे ‘‘धंसने’’ से प्रभावित स्थानीय लोगों ने 24 दिसंबर को प्रशासन पर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाने का आरोप लगाते हुए शहर में विरोध मार्च निकाला था। जोशीमठ नगरपालिका के एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक साल में शहर के 500 से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने योग्य नहीं रह गए हैं।
उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल ने पाया है कि जोशीमठ के कई हिस्से मानव निर्मित और प्राकृतिक वजहों से ‘‘धंस’’ रहे हैं।
लाहौल स्पीति में दो दिन भारी बारिश व बर्फबारी का अलर्ट
केलांग, 25 दिसंबर : उपायुक्त सुमित खिमटा ने जानकारी देते हुए बताया कि मौसम जोखिम प्रबंधन विज्ञान, विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार 25 व 26 दिसंबर तक बर्फबारी की संभावना है। उन्होंने आम जनता को सलाह दी है कि किसी भी प्रकार के जोखिम से बचने के लिए अधिक ऊंचाई वाले व कम तापमान वाले क्षेत्रों में अनावश्यक यात्रा से बचें। अपने घरों में सुरक्षित स्थानों पर रहें।
उन्होंने ग्राम पंचायत प्रधानों, गैर सरकारी संगठनों, ट्रेकर्स और पैदल चलने वालों से अनुरोध किया कि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं। अपने-अपने क्षेत्रों में सतर्क रहें, कोई भी जरूरी यात्रा करने से पहले मौसम, सड़क की स्थिति के बारे में जानकारी सुनिश्चित कर लें। जानकारी के लिए या किसी प्राकृतिक आपदा व घटना की स्थिति में कृपया जिला आपदा नियंत्रण कक्ष से संपर्क करें।
उपायुक्त लाहौल एवं स्पीति का कहना है कि आपातकालीन स्थिति में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जिला लाहौल एवं स्पीति से इन नंबरों पर 94594-61355, 01900202509, 510, 517, टोल फ्री-1077 पर संपर्क कर सकते है।
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