Types of Heart Attack: तीन तरह का होता है हार्ट अटैक, नशा करने वाले लोगों के दिल में दिखता है ये बदलाव
Heart Attack: किसी हार्ट पेशेंट को ट्रीटमेंट देते समय डॉक्टर्स को कई बारीकियों पर ध्यान देना होता है. इन्हीं में शामिल है, इस बात पर ध्यान देना कि हार्ट अटैक किस प्रकार का है.
By: ABP Live | Updated at : 07 Dec 2022 08:45 AM (IST)
हार्ट अटैक के प्रकार
Cause Of Heart Attack: हार्ट अटैक के बारे में यह बात ज्यादातर लोग जानते हैं कि ब्लड फ्लो में किसी भी तरह की बाधा आने के कारण यदि दिल को ब्लड की सप्लाई ना हो पाए तो हार्ट अटैक आ जाता है. यह हार्ट अटैक को डिफाइन करने का सबसे आसान तरीका है, जिसे आम इंसान भी समझ सकता है. लेकिन डॉक्टर्स के लिए यह सब इतना आसान नहीं होता है. किसी हार्ट पेशेंट को ट्रीटमेंट देते समय डॉक्टर्स को कई बारीकियों पर ध्यान देना होता है. इन्हीं में शामिल है, इस बात पर ध्यान देना कि हार्ट अटैक किस प्रकार का है (Types of Heart Attack). आपका चौंकना जायज है, लेकिन यहां जानें कि हार्ट अटैक (Heart Attack) एक नहीं बल्कि तीन प्रकार का होता है.
1. एसटी सेगमेंट एलिवेशन माइओकार्डियल इंफार्कशन (स्टेमी): यह हार्ट अटैक का पहला प्रकार है. इसमें व्यक्ति को अटैक के समय पर छाती के बीच में दर्द होता है लेकिन यह दर्द बहुत तेज नहीं होता है. बल्कि व्यक्ति को सीने में दबाव और जकड़न महसूस होती है. कुछ लोगों में यह जकड़न और दबाव छाती से बढ़कर, बाहों, गले, जबड़े और पीठ तक पहुंच जाता है.
2. नॉन एसटी सेगमेंट एलिवेशन माइओकार्डियल इंफार्कनश (एनस्टेमी): हार्ट अटैक का यह दूसरा प्रकार है. इसमें हार्ट अटैक आने की वजह कोरोनेरी धमनियों में आंशिक ब्लॉकेज होता है लेकिन दर्द और जकड़न से जुड़े लक्षण स्टेमी यानी एसटी सेगमेंट एलिवेशन माइओकार्डियल इंफार्कशन (ST Segment Elevation Infraction) जैसे ही होते हैं.
3. अस्थिर एनजाइना या कोरोनेरी ऐंठन: यह हार्ट अटैक का तीसरा प्रकार है. इसमें व्यक्ति को जान खतरा अधिक नहीं होता है लेकिन दोबारा हार्ट अटैक आने की संभावना बहुत अधिक होती है. क्योंकि इसमें हृदय की धमनियां (Heart arteries) बहुत अधिक सिंकुड़ जाती हैं, जिससे हार्ट में ब्लड फ्लो डिस्टर्ब होता है. कई बार जब कोरोनेरी धमनियों में ऐंठन अधिक भी बढ़ जाती है तो ये भी हार्ट अटैक का कारण बनती है.
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हार्ट अटैक से जुड़ी जरूरी बात
- हार्ट अटैक के बारे में एक जरूरी बात जो हम सभी को पता होनी चाहिए वो यह है कि हर व्यक्ति को हार्ट अटैक के समय सीने में तेज दर्द हो या सामान्य दर्द हो यह जरूरी नहीं है. हो सकता है कुछ लोगों को इस तरह के दर्द का बिल्कुल अनुभव ना हो और पेट दर्द, सीने पर जलन या बदहजमी जैसी समस्या हार्ट अटैक के लक्षण के रूप में नजर आए.
- तंबाकू का सेवन करने वाले या कोकेन जैसे दूसरे नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों में कोरोनेरी धमनी में ऐंठन आने के कारण हार्ट अटैक के केस अधिक देखने को मिलते हैं.
- हार्ट अटैक के कई मामलों में इलाज के दौरान पता चलता है कि अटैक की वजह दिल की धमनी का फटना यानी स्पोंटेनियस कोरोनेरी आर्टरी डाइसेक्शन है. ऐसी स्थितियां भी हानिकारक और प्रतिबंधित नशीली चीजों के सेवन के कारण अधिक बनती हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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Published at : 07 Dec 2022 08:45 AM (IST) Tags: heart attack Health Type Of Heart Attack हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Lifestyle News in Hindi
डीप-टेक और ग्रासरूट इनोवेशन फेस्टिवल में नवोन्मेषी भारत की झलक
प्रगतिशील भारत देश में एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है तरक्की के साथ-साथ छोटी बड़ी तमाम चुनौतियां भी आती है और उन चुनौतियों के निस्तारण के लिए तरह-तरह के नवाचार कार्य कर रहे हैं और सफल हो रहे हैं। एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है चुनौतियों के रूप में उदाहरण के लिए पंखे के ब्लड पर जमा होने वाले धूल के कण जो उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करते हैं उनकी सफाई के लिए आज एक फिल्टर की खोज दी गई है। तालाबों और नदियों जैसे जल स्रोतों में जलकुंभी के प्रकोप के निस्तारण के लिए भी समाधान नवाचार के माध्यम से सामने आया है।
आज के समय में बीमारियों का बोझ जिस प्रकार बढ़ा है उससे कोई भी अनजान नहीं है। परंतु इस दौर में भी पर्याप्त डायग्नोस्टिक सेवाओं की पहुंच बहुत सीमित है। आज इसका भी समाधान एक मोबाइल डायग्नोस्टिक लैब के माध्यम से रखा गया है जो बाइक पर सवार होकर गांव गांव तक अपनी सेवाएं देगी। ऐसे 100 से अधिक अनूठे उत्पादों एवं सेवाओं वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकीय नवाचारों पर केंद्रित ‘पीपुल्स फेस्टिवल ऑफ इनोवेशन’ नामक प्रदर्शनी नई दिल्ली में दस दिनों तक लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रही।
पीपुल्स फेस्टिवल ऑफ इनोवेशन
प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गए उत्पाद और सेवाओं को देखकर यह जाना जा सकता है कि देश के दूरदराज इससे आए आम लोग और प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक, इंजीनियर किस प्रकार प्रौद्योगिकी समाधान और नए उत्पाद की खोज कर रहे हैं जो कि रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी आवश्यकता है। यह 10 दिवसीय प्रदर्शनी 19 नवंबर को शुरू हुई , 29 नवंबर को संपन्न हो गई है। सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म्स (C-CAMP), बेंगलूरु और ग्रासरूट्स इनोवेशंस ऑग्मेंटेशन नेटवर्क (GIAN), अहमदाबाद के सहयोग से यह प्रदर्शनी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी), नई दिल्ली द्वारा आयोजित की गई।
प्रभावी नवाचारों का उत्सव है उद्देश्य
आईआईसी द्वारा अपने हीरक जयंती वर्ष में इस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य रोमांचक और प्रभावी इनोवेशन या नवाचारों का उत्सव मनाना और सबको एक मंच पर लाना था। इस उत्सव के दो प्रमुख विषय डीप टेक इनोवेशन और ग्रासरूट इनोवेशन, हेल्थकेयर, कोविड-19, गैर संचारी रोग, कृषि एवं पशु स्वास्थ्य, कृषि मशीनरी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं पर्यावरण तथा स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी जरूरतों को संबोधित किया करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य नई पीढ़ी के इनोवेटर्स एवं जिंदगी से जुड़ी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना है।
सरकार के 33 वर्षों के कार्यकाल में, 5000 से अधिक नवप्रवर्तकों की मदद
सक्षम प्रौद्योगिकी के एक स्पॉटलाइट के रूप में यह प्रदर्शनी आयोजित की गई है। फिलीपीन्स के ‘ग्रासरूट इनोवेशन्स फॉर इन्क्लूसिव डेवेलपमेंट’ का नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी अपने अनुभवों को साझा करने के लिए प्रदर्शनी में शामिल हुआ। डॉ रेणु स्वरूप, पूर्व सचिव, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने कहा है कि “सरकार में 33 वर्षों के कार्यकाल में, 5000 से अधिक नवप्रवर्तकों की मदद करने के बाद, यह पहली बार देखने को मिला है कि डीप-टेक और जमीनी स्तर के नवाचारियों के बीच यह समन्वय हुआ है। ग्रासरूट स्तर पर हों, या फिर डीप-टेक; वे सभी नवाचार हैं; और दोनों ही समाज को प्रभावित करते हैं। आमतौर पर, इन्हें अलग-अलग खाँचों में रखा एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है जाता है, और इनका समागम नहीं हो पाता है। लेकिन, इनमें से कई ऐसे होते हैं, जो वास्तव में एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं।”
“आत्मनिर्भर भारत” मिशन का एक प्रमुख आयाम
डीप-टेक इस उत्सव को अधिक वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है, तो दूसरी ओर जमीनी स्तर के नवाचार “जनसाधारण” की भावना को स्वर देते हैं। आईआईसी के अध्यक्ष श्याम सरन ने कहा है कि “हमारे नवप्रवर्तकों का योगदान केंद्र सरकार के “आत्मनिर्भर भारत” मिशन का एक प्रमुख आयाम है। नवोन्मेषी आइडिया, पहल एवं विचारों के आदान-प्रदान के लिए प्रभावी मंच प्रदान करने के लिए आईआईसी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आगे भी इस पर हमारी प्रतिबद्धता बनी रहेगी।”
नीति आयोग के सतत विकास सूचकांक में केरल शीर्ष पर, बिहार सबसे नीचे
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सतत विकास लक्ष्यों के इस साल के सूचकांक में बिहार, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा. यह भी कहा गया है कि पोषण और स्त्री-पुरुष असमानता देश के लिए समस्या बनी हुई है. The post नीति आयोग के सतत विकास सूचकांक में केरल शीर्ष पर, बिहार सबसे नीचे appeared first on The Wire - Hindi.
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सतत विकास लक्ष्यों के इस साल के सूचकांक में बिहार, झारखंड एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा. यह भी कहा गया है कि पोषण और स्त्री-पुरुष असमानता देश के लिए समस्या बनी हुई है.
नयी दिल्लीः सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) की दिशा में राज्यों की प्रगति संबंधी नीति आयोग की इस साल की रिपोर्ट में केरल पहले स्थान पर रहा. वहीं बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा.
आयोग के एसडीजी भारत सूचकांक में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के क्षेत्र में राज्यों की प्रगति के आधार पर उनके प्रदर्शन को आंका जाता है और उनकी रैंकिंग की जाती है.
नीति आयोग की ओर से सोमवार को जारी एसडीजी भारत सूचकांक 2019 के अनुसार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम ने 2018 के मुकाबले काफी अच्छी प्रगति की है जबकि गुजरात जैसे राज्यों की रैंकिंग में कोई बदलाव नहीं हुआ.
2018 में उत्तर प्रदेश को 42 अंक मिले थे लेकिन 2019 में इस राज्य ने कुल 55 अंक प्राप्त किए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सूचकांक में केरल 70 अंक के साथ शीर्ष पायदान पर बना रहा. केंद्रशासित प्रदेशों में चंडीगढ़ भी 70 अंक के साथ शीर्ष स्थान पर रहा.’
सूची में हिमाचल प्रदेश दूसरे स्थान पर जबकि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना तीनों तीसरे स्थान पर रहे.
सतत विकास लक्ष्यों के इस साल के सूचकांक में बिहार, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन सबसे खराब रहा.
नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र का 2030 का एसडीजी लक्ष्य भारत के बिना कभी भी हासिल नहीं किया जा सकता. हम विकास के संयुक्त राष्ट्र में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिये पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं.’
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य के मोर्चे पर दक्षिणी राज्यों का प्रदर्शन अच्छा रहा है.
कुमार ने कहा, ‘नीति आयोग के एसडीजी सूचकांक 2019 में पश्चिम बंगाल (14वां रैंक) का प्रदर्शन भी अच्छा रहा लेकिन शैक्षणिक स्तर को देखते हुए राज्य को तीन बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में होना चाहिए.’
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का इस मामले में समग्र प्राप्तांक सुधरकर 2019 में 60 पर पहुंचा जबकि 2018 में यह 57 था. पानी और साफ-सफाई, बिजली और उद्योग के क्षेत्र में अच्छी सफलता हासिल हुई है.
हालांकि, पोषण और स्त्री-पुरुष असमानता देश के लिए समस्या बनी हुई है. सरकार को इस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है है.
रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष स्थान पाने वाले पांच राज्यों में से तीन का 12 लक्ष्यों को हासिल करने में प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा है. वहीं दो राज्यों का प्रदर्शन 11 मामलों में राष्ट्रीय औसत से बेहतर है.
गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में जिन राज्यों का प्रदर्शन बेहतर रहा है, उसमें तमिलनाडु, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम शामिल हैं. वहीं भुखमरी को पूरी तरह समाप्त करने के मामले में गोवा, मिजोरम, केरल, नगालैंड और मणिपुर आगे रहे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़, असमानता कम करने में तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शीर्ष पर रहे.
नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र की मदद से एसडीजी भारत सूचकांक पिछले साल पहली बार जारी किया था. इसमें संयुक्त राष्ट्र की एसडीजी के 17 क्षेत्रों में से 16 को रखा गया है. सतत विकास लक्ष्य स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता, साफ पानी, स्वच्छता, भूख और गरीबी जैसे मानकों के आधार पर रखा जाता है.
इस साल का सूचकांक राज्यों को 100 संकेतकों पर आधारित 54 लक्ष्यों के मामले में प्रगति के आधार पर तैयार किया गया है. संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे 306 संकेतकों की पहचान की है.
वर्ष 2018 में जारी पहली रिपोर्ट में 13 लक्ष्य और 39 संकेतक थे. संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 देशों से एसडीजी को अपनाया था. वर्ष 2020 इसकी पांचवीं वर्षगांठ होगी.
व्यापक विचार-विमर्श के बाद एसडीजी के तहत 17 लक्ष्य और 169 संबंधित लक्ष्य तय किए गए हैं. इसे 2030 तक हासिल करना है. इसका मूल लक्ष्य समाज की बेहतरी के लिये आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक मोर्चे पर उच्च मानदंडों को प्राप्त करना है.
एससी एसटी एक्ट व महिला उत्पीड़न के झूठे मुकदमों का है बोलबाला – राजस्थान पुलिस
11 जनवरी 2021 को जयपुर में राजस्थान के डीजीपी मोहनलाल राठौड़ द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई जिसमें साल 2020 के अपराधों पर बात करते हुए मोहनलाल राठौड़ ने आंकड़ों के साथ कुछ चीजें पेश की और वह इस प्रकार थी कि 2020 में राजस्थान में करीबन 7017 मुकदमें एससी एसटी एक्ट सिटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हुए जांच में पाया गया कि करीबन करीबन 42% के आसपास 3000 से ज्यादा मुकदमे फर्जी तरीके से मांगी है वह सामाजिक दुर्भावना को मध्य नजर रखते हुए बदले की भावना के मद्देनजर रखते हुए किसी व्यक्ति विशेष को बदनाम करने के मध्य नजर रखते हुए फर्जी दर्ज कराए गए इसी के साथ महिला उत्पीड़न में भी फर्जी मुकदमों का दायरा 40% से ज्यादा का रहा कहीं ना कहीं महिला उत्पीड़न हो यह sc-st एट्रोसिटी एक्ट हो यह इस बात को दर्शाता है कि किस प्रकार से जाति के नाम पर अधिकारों के नाम पर लोग कानून का दुरुपयोग करते हैं जब 21 मार्च 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी रिपोर्ट से तंग आकर एससी एसटी एक्ट पर संशोधन तथा बिना जांच गिरफ्तारी ना करने की बात कही उसके बाद राजनीति के चाटुकार नेताओं ने केंद्र सरकार तक इस बात की शिकायत करते हुए 2 अप्रैल 2018 को आप सब साक्षी हैं कि किस प्रकार पूरे भारत को आग के हवाले कर दिया गया हिंदुस्तान के संसाधनों को तोड़ा गया थोड़ा गया और करीबन करीबन हजारों करोड रुपए का नुकसान आम जनता के टैक्स से बनी हुई संसाधनों पर किया गया उस समय भी उन तमाम अपराधियों पर जब कानूनी कार्यवाही करने हेतु मुकदमे दर्ज हुए तो राजस्थान की वर्तमान सरकार में अपनी सरकार बनते ही सारे के सारे ऐसे मुकदमों को वापस ले लिया गया इस प्रकार से किसी कानून को राजनीतिक रंग देना इस बात की ओर संकेत करता है कि गुनहगार और अपराधी को सह भी देने वाली यह सरकारें ही मुख्य रूप से देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने में पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भी संज्ञान लेना चाहिए कि ऐसे कौन लोग हैं जो ऐसी अव्यवस्थाओं के पक्षधर है ऐसे लोगों पर भी अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए
2018 के दौर में केंद्र सरकार के करीबन 16 मंत्री जिसमें मुख्य रुप से अर्जुन राम मेघवाल रामविलास पासवान थावरचंद गहलोत रामदास अठावले तथा अन्य sc-st समुदाय से आने वाले नेताओं और मंत्रियों का एक दल प्रधानमंत्री जी से 28 मार्च 2018 को मिला तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस सुझाव को तुरंत प्रभाव से वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया और जब दबाव बनता नहीं दिखा तो 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के नाम पर पूरे हिंदुस्तान के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने का कार्य किया उसके बाद जो मुकदमे तोड़ने वाले अपराधियों पर दर्ज हुए थे उनको भी वापस लेने की पैरवी इन मंत्रियों द्वारा लगातार की गई वर्तमान की राजस्थान डीजीपी की इस रिपोर्ट से यह भाग बिल्कुल तय हो जाती है कि कहीं ना कहीं एससी एसटी एक्ट के नाम पर इस कानून का भरपूर दुरुपयोग होता आ रहा है क्योंकि मैं बता दूं कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के मुकदमे दर्ज होने पर पीड़ित को मुआवजे के नाम पर सहायता राशि दी जाती है और उस सहायता राशि को प्राप्त करने के साथ-साथ किसी से भी किसी भी प्रकार की बदले की भावनाओं को पूरी करने के चक्कर में कोई भी व्यक्ति किसी पर भी एससी एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज करवा कर प्रताड़ित कर सकता है और यह जो 40% झूठे मामले हैं यह कहीं ना कहीं उसी संदर्भ में है
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम
अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989, जिसे एससी / एसटी अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है, को भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ हाशिए के समुदायों की रक्षा के लिए लागू किया गया था।
कानून में विभिन्न अपराधों या व्यवहारों से संबंधित अपराधों को सूचीबद्ध किया गया है जो आपराधिक अपराधों को दर्शाता है और अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के आत्म-सम्मान और सम्मान को तोड़ता है, जिसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक, और सामाजिक अधिकारों, भेदभाव, शोषण और दुर्व्यवहार से इनकार शामिल है। कानूनी प्रक्रिया।
अधिनियम की धारा 18 के तहत, अपराधियों को अग्रिम जमानत का प्रावधान उपलब्ध नहीं है। कोई भी लोक सेवक, जो जानबूझकर इस अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, 6 महीने तक कारावास के साथ सजा के लिए उत्तरदायी है। एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों के रूप में “अत्याचार” के अधिक उदाहरणों को जोड़कर अधिनियम को अधिक कठोर बनाने के लिए 2015 में मूल अधिनियम में एक संशोधन जोड़ा गया था।
विवादास्पद कानून ने एससी / एसटी समुदायों द्वारा अन्य समुदायों के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करके बड़े पैमाने पर दुरुपयोग के मामलों से संबंधित देश में एक बड़ी बहस को हवा दी है। इसे संज्ञान में लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2018 के फैसले में अनुसूचित जाति और एसटीसी किस प्रकार का संकेतक है अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कड़े प्रावधानों को कम कर दिया था।
हालांकि, केंद्र सरकार ने SC / ST अत्याचार अधिनियम से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश को रद्द करने के लिए एक और संशोधन अधिनियम लाया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
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