छोटी-छोटी बातों पर लड़ने वाले बच्चों को खुद सुलझाने दें झगड़े
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। अक्सर छोटे बच्चे ये शिकायत करते नजर आते हैं कि किसी खास दोस्त ने उनकी पैंसिल नहीं लौटाई है या उनके साथ खेल नहीं रहा है या कजिन ने उनका खिलौना छीन लिया है तथा अब वे न तो उनके साथ बोलेंगे और न ही खेलेंगे। ये झगड़े भले ही आपके लिए छोटे हों, परंतु उनके लिए ये मतभेद काफी बड़े होते हैं तथा वे इन्हें सुलझाने में आपका हस्तक्षेप चाहते हैं। बेहतर तो यही है कि आप अपने छोटे बच्चों को शुरू से ही ऐसे मतभेद या झगड़े सुलझाने दें, ताकि बड़े हो कर वे परिस्थितियों को संभालना एवं उन्हें स्वीकार करना सीख सकें।
सिचुएशन समझना सिखाएं
बच्चों को समझाएं कि उनके दोस्त या कजिन के मन में क्या सोच हो सकती है। अगर उन्होंने उसका खिलौना छीना हो तो इसका कारण समझाने का प्रयास करें। उन्हें बताएं कि हो सकता है कि उनके दोस्त या कजिन के पास वैसा खिलौना न हो। उन्हें बताएं यदि उसके पास भी कोई खास खिलौना न हो जो उसके दोस्त के पास हो तो वह कैसा महसूस करेगा। अत: ऐसी स्थिति जब भी आएगी, वे उसे खुद ही हैंडल करना सीख जाएंगे, वे जान लेंगे कि ऐसा तो सभी बच्चे करते हैं।
समाधान ढूंढना सिखाएं
उनके झगड़ों को खुद सुलझाने की अपेक्षा आप उन्हें समस्या का समाधान खुद ढूंढना सिखाएं। आप उन्हें इतना कह सकती हैं कि वे बारी-बारी से उस खिलौने से खेलें। हो सकता है कई बार उन्हें मामला सुलझाने में दिक्कत हो, तो उन्हें विश्वास दिलाएं कि आप उन्हें बेहतर सुझाव दे सकती हैं ताकि कोई भी दुविधा होने पर झगडऩे लंबी और छोटी स्थिति को समझना की अपेक्षा वे आपके पास आएं।
गलतियों को स्वीकार करना सिखाएं
हालांकि परिपक्व लोग भी अपनी गलती को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते, परंतु यदि आप अपने बच्चों को यह सिखाएंगी, तो वे बेहद सहजता से इसे सीख लेंगे, क्योंकि एक छोटी सी सॉरी किसी भी बहस या झगड़े से उन्हें बचा सकती है। उन्हें गलती करने के बाद गुस्से में न आकर शांत रह कर अपनी गलती को समझने और माफी मांगने के लिए कहें। उन्हें बताएं कि माफी मांगने में कोई बुराई नहीं होती तथा गलती हर कोई करता है, परंतु अच्छे बच्चे अपनी गलती दोहराते नहीं।
रिलैक्स होने का तरीका सिखाएं
उन्हें रिलैक्स रहने और गुस्सा आने पर खुद को शांत रखने के तरीके सिखाएं। आप उन्हें सिखा सकती हैं कि जब भी उन्हें गुस्सा आए, वे 1-10 तक गिनती गिनें और लंबी सांस लें या उस जगह से हट जाएं तथा अपना ध्यान कहीं ओर लगाएं।
रोल मॉडल बनें
बच्चे आम तौर पर वही करते और सीखते हैं, जो वे घर पर देखते हैं। इसलिए जब आपके और आपके पार्टनर के बीच वाद-विवाद हो रहा हो, तो भाषा का ख्याल रखें। कोशिश करें कि आप बच्चों के सामने बहस न करें। एक-दूसरे पर चिल्लाएं तो बिल्कुल नहीं, इससे उन पर गलत असर पड़ेगा।
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छोटी-छोटी बातों पर भी आपको ज्यादा गुस्सा क्यों आता है? जानें गुस्सा कंट्रोल करने के खास टिप्स
Written by: Monika Agarwal Updated at: Apr 04, 2022 18:01 IST
आज की इस व्यस्त जीवनशैली में काम के तनाव के कारण व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत अधिक प्रेशर में रहने लगा है। जिसकी वजह से अक्सर छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाना एक आम समस्या बन गया है। लेकिन यह चिड़चिड़ाहाट कभी-कभी विकराल गुस्से का रूप ले लेती है। क्या आपके साथ भी अक्सर ऐसा ही होता है? अगर आपका जवाब हां है तो आपके लिए एक चिंता का विषय है। आपके लिए बेहद जरूरी है यह जानना कि आपको इतना गुस्सा क्यों आता है क्योंकि इसकी वजह से आप हाई ब्लड प्रेशर दिल संबंधी रोग डिप्रेशन आदि रोगों से घिर सकते हैं। इससे दूसरों पर भले ही कुछ समय के लिए असर पड़ रहा हो लेकिन इन कुछ पलों में जो हमारा खून जलता है वह हमारे लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए अगर ज्यादा गुस्सा आता है तो कुछ तकनीकों जैसे गहरी सांसे लेना या फिर मेडिटेशन करने से गुस्से को शांत किया जा सकता है। जानते हैं विस्तार से।
क्यों आता लंबी और छोटी स्थिति को समझना है अधिक गुस्सा
गुस्सा हर किसी को आता है और हर किसी का इससे डील करने का तरीका अलग अलग हो सकता है। कुछ लोगों को कम गुस्सा आता है और वह अपने परिवार वालो से थोड़ा बहुत नाराजगी दिखा कर ही गुस्से को शांत कर लेते हैं। तो कुछ लोग गुस्सा में आसमान सिर पर उठा लेते हैं और वह गुस्सा आने के बाद चीजों को इधर-उधर फेंकते हैं। खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोगों का गुस्सा रोने के बाद ही शांत होता है। कभी कभार किसी बात पर गुस्सा आना ठीक है लेकिन अगर रोजाना ही बेवजह गुस्सा होते रहते हैं तो इस स्थिति को ठीक करना भी काफी जरूरी बन जाता है।
गुस्से को नियंत्रित करना क्यों है जरूरी?
अपने गुस्से को शांत करने के लिए दूसरों को मारना, उनसे लड़ाई झगड़ा करना या फिर किसी चीज को तोड़ना अच्छा तरीका नहीं होता। इसलिए गुस्से को शांत करना ताकि आप दूसरों को भी कोई नुकसान न पहुंचा सके काफी आवश्यक हो जाता है। इन तरीकों में कुछ थेरेप्टिक प्रक्रिया भी शामिल होती हैं जो आपको यह समझने में मदद करती हैं कि जो आप कर रहे हैं उसका कोई लाभ नहीं है। आपके गुस्से के कारणों को शांत करना भी इसी प्रकार के उपचार में शामिल होता है। इसलिए अपने आप को शांत करें और किसी प्रोडक्टिव काम में लगा दें।
गुस्सा शांत करने की कुछ टिप्स
- योग ट्राई करें।
- जब तक आपको शांत महसूस नहीं होता तब तक लंबी लंबी सांस ले।
- अपने आप को रिलैक्स रहने के लिए बोलें।
- चिल्लाने की बजाए आराम से बात करने की कोशिश करें।
- अपने आप को थोड़ा ब्रेक दे और जो चीज आपको पसंद है वह करें।
कब डॉक्टर की सलाह लें
जब गुस्से की वजह से आप मानसिक और शारीरिक रूप से भी बीमार महसूस करें तो इसका मतलब है अब प्रोफेशनल की सहायता लेने का समय आ गया है। लेकिन इस स्थिति को कैसे पहचान सकते हैं यह सवाल भी आपके मन में जरूर आया होगा। तो अगर आपको निम्न लक्षण दिखते हैं तो तुरंत गुस्से को कंट्रोल लंबी और छोटी स्थिति को समझना करने की पहल करें।
- ब्लड प्रेशर लेवल का अधिक बढ़ना।
- धड़कन का ज्यादा तेज होना।
- मसल्स में टाइटनेस होना या अकड़ना।
- अपनी सुध बुद्ध खोना।
- गुदगुदाहट महसूस होना।
- मानसिक रूप से आपको काफी फ्रस्ट्रेशन महसूस होगी और आप सारा दिन चिड़चिड़ा महसूस करेंगे।
- आपके व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिलेगा और एंजाइटी जैसे लक्षण भी लंबी और छोटी स्थिति को समझना दिखेंगे।
गुस्सा जब अधिक खतरनाक रूप ले लेता है तो यह आपके लिए काफी हानिकारक हो सकता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना जरूर आवश्यक समझें। साथ ही यह भी याद रखें कि इसमें आप अकेले नहीं हैं।
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TCS Share Buyback: टीसीएस कर रही है शेयर बायबैक, जानिए निवेशकों को शेयर बेच देने चाहिए या रखे रहने में है फायदा!
TCS Share Buyback: आईटी कंपनी टीसीएस 18000 करोड़ रुपये तक के शेयर बायबैक कर रही है यानी अपने ही शेयर वापस खरीद (why a company buyback its shares) रही है। टीसीएस की 4,500 रुपये प्रति शेयर के मूल्य पर पुनर्खरीद पेशकश बुधवार को बीएसई में कंपनी के शेयर के लंबी और छोटी स्थिति को समझना बंद भाव 3,857.25 रुपये से करीब 16.6 प्रतिशत अधिक है। पहले भी दो बार कंपनी ऐसा कर चुकी है। सवाल ये है कि कंपनी ऐसा क्यों कर रही है और इस स्थिति में निवेशकों (what share buyback means for investor) को क्या करना चाहिए। आइए समझते हैं पूरी बात।
TCS Share Buyback: टीसीएस कर रही है शेयर बायबैक, जानिए निवेशकों को शेयर बेच देने चाहिए या रखे रहने में है फायदा!
पहले समझिए क्या होता है शेयर बायबैक
शेयर बायबैक वह प्रक्रिया है, जिसमें कोई कंपनी अपने ही शेयर्स को बाजार से वापस खरीद लेती है। इस तरह कंपनी खुद में ही री-इन्वेस्ट करती है। कंपनी के शेयरों को वापस खरीद लेने के बाद बाजार में आउस्टैंडिंग शेयर्स की संख्या कम हो जाती है। अब क्योंकि शेयर्स की संख्या कम हो जाती है तो हर शेयरहोल्डर का मालिकाना हक तुलनात्मक आधार पर कुछ बढ़ जाता है। शेयर बायबैक को आसान शब्दों में आईपीओ की उलट प्रक्रिया की तरह भी समझा जा सकता है।
कोई भी कंपनी क्यों खरीदती है अपने ही शेयर?
शेयर बायबैक की बात जब भी होती है तो एक सवाल ये सबसे मन में उठता है कि आखिर कंपनी अपने ही शेयर क्यों खरीद रही है। जब कभी कंपनी को लगता है कि उसके पास अधिक पूंजी है और उसे निवेश करने के लिए कोई प्रोजेक्ट नहीं है तो कंपनी शेयर्स बायबैक कर के खुद में ही निवेश करती है। वैसे भी किसी भी कंपनी के पास अधिक नकदी होना अच्छा नहीं माना जाता है, इससे बैलेंस शीट पर भी असर पड़ता है। ऐसे में शेयर बायबैक से उस नकदी का अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर कंपनी को लगता है कि उसके शेयर की वैल्यू कम आकी जा रही है तो भी कंपनी शेयर बायबैक करती है, जिससे शेयर की वैल्यू बढ़ जाती है। इससे निवेशकों में भी भरोसा पैदा होता है कि कंपनी की वित्तीय हालत बहुत अच्छी है, जिससे कंपनी के शेयर्स के दाम भी बढ़ते हैं।
अहम सवाल ये कि निवेशक क्या करें?
टीसीएस की बायबैक प्रक्रिया में सबसे बड़ा सवाल ये है कि अब टीसीएस के निवेशकों को क्या करना चाहिए। इस सवाल का जवाब लंबी अवधि और छोटी अवधि के निवेशकों के लिए अलग-अलग है। अगर आपने लंबी अवधि के लिए टीसीएस में निवेश किया है तो बायबैक की प्रक्रिया में आप अपने शेयरों को ना बेचें, उनमें निवेश किए रहें, वो आने वाले दिनों में आपको और अधिक रिटर्न देंगे। आपको शेयर बायबैक के तहत शेयर तभी बेचने चाहिए अगर आपको लगे कि कंपनी के शेयर की वैल्यू काफी अधिक (ओवरवैल्यूड) है और कंपनी के लंबी और छोटी स्थिति को समझना पास ग्रोथ के कोई खास मौके नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर, अगर आपने छोटी अवधि के लिए टीसीएस में निवेश किया है या फिर आपका मकसद सिर्फ ट्रेडिंग कर के मुनाफा कमाने तक सीमित है तो आपके लिए ये किसी गोल्डन चांस से कम नहीं।
जानिए कोर्ट की डिक्री क्या होती है
जजमेंट, डिक्री और आर्डर तीनों ही शब्द सिविल मामले से संबंधित हैं। इन तीनों शब्दों का उपयोग सिविल कोर्ट द्वारा किया जाता है। सिविल मामला पक्षकारों को स्वयं चलाना होता है। कोई भी सिविल मामला आपराधिक मामले की तरह स्टेट के द्वारा नहीं चलाया जाता है बल्कि इसे पक्षकार स्वयं चलाते हैं। अदालत इस मामले को सुनती है ऐसे मामले में अदालत समय-समय पर ऑर्डर देती है। एक जजमेंट देती है वह जजमेंट के साथ एक डिक्री पारित करती है।
कोई भी सिविल केस को अदालत के समक्ष चलाए जाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है। वाद पत्र के जरिए वादी अदालत ने अपनी बात रखता है। इस पर अदालत प्रतिवादी को बुलाकर उससे जवाब मांगती है।
प्रतिवादी जो जवाब प्रस्तुत करता है उन्हें देखने के बाद अदालत इशू बना देती है। इन इश्यू के ऊपर मुकदमा चलता है। इन इश्यू से संबंधित सबूत वादी और प्रतिवादी दोनों को अदालत के सामने पेश करना होते हैं जिनके सबूत मजबूत होते हैं न्यायालय का झुकाव उस और होता है।
सबूतों का अवलोकन करने के बाद न्यायालय उसमें अपना निष्कर्ष देती है। ऐसा निष्कर्ष एक जजमेंट लिखकर प्रस्तुत किया जाता है इस जजमेंट के साथ में डिक्री भी होती है। यह डिक्री पक्षकारों के अधिकारों को स्पष्ट करती है अर्थात जजमेंट में जो निष्कर्ष निकला है उस निष्कर्ष के आधार पर न्यायालय कम शब्दों में संपूर्ण जजमेंट का सार लिख देती है और पक्षकारों के अधिकारों को स्पष्ट कर देती है।
यह डिक्री कानून में अत्यधिक बल रखती है और एक संपत्ति की तरह कार्य करती है। एक डिक्री को पक्षकार ट्रांसफर भी कर सकते हैं जैसे कि यदि किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध उधार पैसे की वसूली के लिए कोई केस किया है तब अगर कोर्ट अपना जजमेंट देकर उधारी चुकता करने लंबी और छोटी स्थिति को समझना के संबंध में डिक्री जारी कर देती है तक जिस व्यक्ति के पक्ष में ऐसी डिक्री जारी की गई है वह डिक्री को एक प्रॉपर्टी की तरह इस्तेमाल कर सकता है। उस डिक्री को किसी अन्य व्यक्ति को दे सकता है जिससे उसकी वसूली कोई दूसरा व्यक्ति कर ले।
एक सिविल प्रकरण में अदालत समय-समय पर आदेश देती है। ऐसे आदेश सिविल केस को चलाने के लिए आवश्यक होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई सिविल केस में अनेक महीनों की तारीख लगती है सभी तारीख पर अदालत कोई न कोई आदेश पारित करती है।
ऐसे आदेश को आर्डर शीट पर लिखा जाता है तथा उस पर न्यायाधीश के हस्ताक्षर होते हैं यह आदेश मामले को कोर्ट में चलाने के लिए देना होते हैं पर इस आदेश से किसी भी व्यक्ति के दायित्व और अधिकार तय नहीं होते हैं और न ही विवाद के तथ्यों पर कोई हल निकलता है अपितु यह तो केवल न्यायालय अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए मामले को आगे बढ़ाता है।
जैसे कि मान लिया जाए लंबी और छोटी स्थिति को समझना किसी मामले में कोई तारीख लगी है और उस तारीख को कोई पक्षकार अदालत के समक्ष हाजिर नहीं होता है तब अदालत ऐसे व्यक्ति को अगली तारीख पर हाजिर होने के लिए आदेश देती है यहां पर विवाद के तथ्यों पर कोई बात नहीं हो रही है जबकि नहीं आने वाले पक्षकार कोई आदेश किया जा रहा है कि आप न्यायालय के समक्ष हाजिर हुए और अपना मामला रखें।
जजमेंट क्या है
जजमेंट कोई भी विवाद के तथ्यों पर अदालत का एक विस्तार पूर्वक निष्कर्ष है जो कोई भी विवाद के तथ्यों पर आए हुए सबूतों का बहुत बारीकी से अवलोकन कर प्रस्तुत करता है। जैसे कि अगर किसी मकान पर कोई दावा किसी पक्षकार द्वारा किया गया है और अदालत के सामने यह मुकदमा लाया गया है कि वह मकान उसका है और उस पर किसी व्यक्ति ने कब्जा कर लिया है लंबी और छोटी स्थिति को समझना तब न्यायालय विवाद के तथ्यों को देखती है।
इस बात की जांच करती है कि क्या वाकई ऐसा कोई मकान है और उस पर कोई कब्जा हुआ है और कब्जा किस व्यक्ति द्वारा किया गया है जिस व्यक्ति का कब्जा होता है उस व्यक्ति से अदालत यह पूछती है कि आप बताएं आपके पास में आपके मालिकाना हक के लिए क्या दस्तावेज हैं, वह अपना मालिकाना हक अदालत में साबित करता है जो भी दस्तावेज आते हैं उनका बहुत बारीकी से अवलोकन किया जाता है।
उस अवलोकन के बाद जजमेंट लिखा जाता है। ऐसे अवलोकन को दो सबूतों के आधार पर होते हैं उन्हें जजमेंट में लिखा जाता है। मुकदमे की एक परिस्थिति को संक्षिप्त में करके जजमेंट में लिख दिया जाता है जो भी बयान पक्षकारों ने दिए हैं उनके बयानों को जजमेंट में लिखा जाता है फिर भी जजमेंट किसी भी पक्षकार के अधिकारों को तय नहीं करता है और न ही किन्हीं पक्षकारों की ड्यूटी बताता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(2) में डिक्री को परिभाषित किया गया है जहां डिक्री को न्यायालय की एक औपचारिक अभिव्यक्ति बताया गया है। यदि सरल शब्दों में कहें तो डिक्री जजमेंट में अंत में लिखी जाने वाली न्यायालय की अभिव्यक्ति है जो विवाद के तथ्यों पर निकले हुए निष्कर्ष से पक्षकारों के अधिकार और दायित्व के संबंध में स्पष्ट उल्लेख कर देती है।
डिक्री का लाभ यह होता है कि पक्षकारों को समस्त निर्णय पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती अपितु डिक्री पढ़कर ही निर्णय के आधार को समझा जा सकता है।डिक्री में न्यायालय कम शब्दों में अपनी बात को रख देती है और इसी के साथ पक्षकारों के अधिकार और दायित्व को स्पष्ट कर देती है।
डिक्री को एक अधिक कानूनी बल प्राप्त होता है यदि न्यायालय लंबी और छोटी स्थिति को समझना में कोई डिक्री पारित की है और जिस पक्षकार के विरुद्ध ऐसी डिक्री पारित की है न्यायालय उस पक्षकार से इस डिक्री के पालन की अपेक्षा करता है। न्यायालय यह स्पष्ट कर देता है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध डिक्री पारित की गई है वह उसका पालन करें। अगर ऐसी डिक्री का पालन नहीं किया जाता है तब जिस व्यक्ति के पक्ष में ऐसी डिक्री पारित की गई है उस व्यक्ति द्वारा न्यायालय में एक मुकदमा लगाकर डिक्री का पालन करवाया जा सकता है।
इन सभी बातों के बाद यह कहा जा सकता है कि संपूर्ण निर्णय में डिक्री ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। डिक्री को न्यायालय द्वारा दिए गए एक सर्टिफिकेट के तौर पर माना जा सकता है, ऐसा सर्टिफिकेट जो किसी व्यक्ति के संबंध में किसी बात को उल्लेखित कर रहा है और घोषणा कर रहा है कहीं भी किसी भी स्थान पर पक्षकार अपनी बात को रखने के लिए केवल छोटी सी डिक्री बता सकते हैं उसके लिए उन्हें कोई बड़ा भारी जजमेंट बताने की आवश्यकता नहीं होती है।
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