इसका अर्थ होता है कि मुद्रा के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तुओं को दूसरे व्यक्ति को बेचता है तथा उसके स्थान में मुद्रा के माध्यम से ही दूसरी वस्तुओं को खरीदता है। मुद्रा के प्रयोग ने क्रय तथा विक्रय दोनों को काफी आसान बना दिया है।

मुद्रा तथा इसके विभिन्न प्रकार (Types of money in Hindi)

नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे अनेक क्षेत्रों से महत्वपूर्ण तथा रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। इस लेख के माध्यम से हम समझेंगे मुद्रा तथा इसके प्रकारों (Types of money in Hindi) के बारे में।

धन या मुद्रा किसी भी अर्थव्यवस्था का केंद्र होती है। मुद्रा का प्रयोग ऋण चुकाने अथवा अर्थव्यवस्था में विनिमय के साधन के रूप में किया जाता है, जिसके माध्यम से आप किसी भी वस्तु या सेवा को खरीद सकते हैं। मुद्रा के इतिहास की बात करें तो प्रचीन काल में वस्तुओं का प्रयोग विनिमय के साधन के रूप में किया जाता था, जिसमें किसी एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का विनिमय होता था और यह व्यवस्था बार्टर सिस्टम कहलाती थी।

मुद्रा के प्रकार (Types of money in Hindi)

प्रकारों की बात करें तो मुद्रा अनेक प्रकार की होती है जिनमे से कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं।

  • वास्तविक मुद्रा
  • वैधानिक मुद्रा
  • साख या ऐच्छिक मुद्रा
  • सांकेतिक मुद्रा
  • प्रामाणिक मुद्रा
  • गर्म मुद्रा
  • प्लास्टिक मुद्रा

वास्तविक मुद्रा

यह मुद्रा का वह प्रकार है, जिसका प्रयोग दैनिक जीवन में लेन देन, किसी उत्पाद या सेवा की कीमत या कर्ज़ की मात्रा प्रकट करने के लिए किया जाता है। जैसे भारत में रुपया, अमेरिका में डॉलर, ब्रिटेन में पाउंड इत्यादि।

वैधानिक मुद्रा

ऐसी मुद्रा, जिसे सरकार द्वारा जारी किया जाता है वैधानिक मुद्रा कहलाती है, इसे स्वीकार करना प्रत्येक व्यक्ति की बाध्यता होती है दूसरे शब्दों में कोई ऋणदाता या व्यक्ति अपने भुगतान के लिए वैधानिक मुद्रा को लेने से इंकार नहीं कर सकता। वैधानिक मुद्रा को अस्वीकार करना दंडनीय अपराध होता है। भारत में सरकार तथा केंद्रीय बैंक द्वारा जारी सभी नोट एवं सिक्के वैधानिक मुद्रा है। किसी भी देश की मुद्रा वैधानिक मुद्रा ही होती है।

मुद्रा क्या है? मुद्रा की परिभाषा | मुद्रा का अर्थ एवं प्रकार

मुद्रा के बिना आधुनिक अर्थव्यवस्था की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. किसी राज्य में यदि कोई आर्थिक गतिविधि होती है तो उसमे कही न कही मुद्रा का केंद्रीय स्थान होता है. मुद्रा क्या है ये तो मोटा-मोटा सभी को पता होगा लेकिन मुद्रा की परिभाषा कम ही लोग जानते होंगे।

इस आर्टिकल में मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या‌ है? मैं आपको मुद्रा का अर्थ एवं प्रकार सब-कुछ समझाऊंगा। यदि यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो इसे दोस्तों के साथ शेयर भी करें।

Table of Contents

मुद्रा क्या है? मुद्रा का अर्थ

मुद्रा शब्द अंग्रेजी के शब्द ‘Money’ का हिंदी रूपांतरण है। Money को लैटिन भाषा के Moneta शब्द से लिया गया है।

मुद्रा की परिभाषा

मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो सामान्य रूप में विनिमय (exchange) के माध्यम, मूल्य के माप, धन के संचय तथा ऋणों के भुगतान के रुप में स्वीकार की जाती है। मुद्रा को राजकीय मान्यता तथा संरक्षण भी प्राप्त होता है|

दूसरे शब्दों में कहें तो मुद्रा (currency) धन के उस रूप को कहते हैं जिस से दैनिक जीवन में क्रय और विक्रय (buying and selling) की क्रियाएं होती है।

क्राउथर के अनुसार, “मुद्रा वह वस्तु है जो विनिमय के माध्यम के रूप में सामान्यतया स्वीकारी जाती है और साथ ही साथ में मुद्रा के मापऔर मुद्रा के संग्रह का कार्य भी करे।”

मुद्रा के प्रकार

मुद्रा के कई प्रकार है. यदि मुद्रा के वर्गीकरण के बारे बात की जाये तो इसे हम निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते है-

भीतरी मुद्रा (Inside money)

वह मुद्रा जो अर्थव्यवस्था की भीतरी निजी इकाइयों के ऋण पर आधारित हो| जैसे बैंक में जमा का उस मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या‌ है? सीमा तक भाग जो उसके द्वारा निजी क्षेत्र को दिए गए ऋण के बराबर हो उसे भीतरी मुद्रा कहते है|

बाहरी मुद्रा (outside money)

बाहरी मुद्रा लोगो का शुद्ध धन होता है| बाहरी मुद्रा जैसे- सोना, सरकारी प्रतिभूति आदि तथा भीतरी मुद्रा जैसे बैंक बैलेंस।

फिएट मनी या लीगल टेंडर (Fiat money)

ये मुद्रा सरकार के अनुसार चलती हैं. और सरकार फ़िएट मनी को ही लीगल टेंडर घोषित करती है. जिसे देश के सभी लोगों और संस्थाओं को भुगतान के साधन के रूप में स्वीकार करना होता है.

भारत में एक रूपये का सिक्का या नोट एक सीमित ग्राह्य लीगल टेंडर है. अर्थात एक रूपये के सिक्कों या नोट से आप एक सीमा तक ही भुगतान कर सकते है. सीमा के बाहर इनको स्वीकार करने की कोई वैधानिक अनिवार्यता नहीं है.

मुद्रा और बैंकिंग

मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु० के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी ?

माना बंधपत्र की कीमत = x
ब्याज की दर = 5%
समय = 2 वर्ष
पहले वर्ष का ब्याज;
= x × 5 100 = 5 x 100 = x 20 . . . ( i )

दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत;
= x + x 20 = 21 x 20
दूसरे वर्ष का ब्याज
= 21 x 20 × 5 100 = 21 x 20 × 5 100 = 21 x 400 . . . ( ii )
कुल ब्याज;
(i) + (ii)
= x 20 + 21 x 400 = 20 x + 21 x 400 = 41 x 400

चूँकि,
= 41 x 400 = 500 ⇒ x = 500 × 400 41 = 4878 . 048 ( approx )
अत: बंधपत्र की कीमत = 4,878 रूपए

संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है ?

मुद्रा क्या मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या‌ है? है और इसके कार्य क्या‌ है?

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"मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार .

Solution : मुद्रा विनिमय का साधन है। इसमें क्रय शक्ति होती है। इसलिए मुद्रा के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री की जाती है।
मुद्रा के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों और अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की परिभाषा देकर इसके अर्थ को स्पष्ट किया है। इनमें प्रो. हार्टले विदर्स का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने मुद्रा को परिभाषा देते हुए यह कहा है कि "मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती है।" इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक पदार्थ या वस्तु जिसमें क्रय शक्ति होती है और जिसे लोग मुद्रा के रूप में स्वीकार करते हैं वही मुद्रा कहलाती है। यह मुद्रा विनिमय का कार्य करती है।
देश में ओ मुद्रा चलन के रूप में रहती है वही मुद्रा है और वही मुद्रा, मुद्रा का कार्य भी करती है। यह विनिमय का साधन है। इसके आधार पर मुद्रा मूल्य का संचय किया जाता है। साथ ही मुद्रा का एक निश्चित मूल्य होता है जिसके आधार पर अर्थव्यवस्था में ऐसी मुद्रा चलन में रहती है और जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री की जाती है। भारत में सिक्के और कागजी नोट चलन मुद्रा (Currency) हैं। जिनके आधार पर विनिमय का कार्य होता है। अतः यह कथन बिल्कुल सही है कि मुद्रा वही है जो मुद्रा का कार्य करती है।

मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या‌ है?

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मुद्रा के मुख्य कार्य कौन-से ह .

Solution : मुद्रा के इन चार कार्यों को अंग्रेजी के एक पद के रूप में व्यक्त किया गया है जिसका हिन्दी रूपान्तरण इस प्रकार है-मुद्रा के कार्य चालू/मानक, माध्यम, पान, भंडार।
(i)विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-प्रारंभ से ही मुद्रा ने समाज में विनिमय-माध्यम का आवश्यक कार्य पूरा किया है। विनिमय-माध्यम के रूप में मुद्रा सब वस्तुओं के लेन-देन को मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या‌ है? सम्भव बनाती है। उत्पादक अपना माल थोक-विक्रेताओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं थोक-विक्रेता वही माल उपभोक्ताओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं।
(ii) मूल्य का सामान्य मापन (Common Measure of Value)-मुद्रा द्वारा अर्थव्यवस्था में उत्पन्न समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य मापा जाता है। वस्तु-विनिमय में यह निर्णय करना कठिन था कि वस्तु की मात्रा-विशेष के बदले दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा प्राप्त होनी चाहिए। मुद्रा ने सामान्य मूल्य-मापक का कार्य सम्पन्न करके समाज को इस कठिनाई से मुक्त कर दिया है। (ii) क्रय शक्ति एवं मूल्य का भण्डारण का कार्य, (iv) मुद्रा की सर्वमान्यता ,(v) भविष्य में स्थगित भुगतान के मानक का काम।

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